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वर्धमानसूरिकृत आचारदिनकर में प्रतिपादित संस्कारों का तुलनात्मक एवं समीक्षात्मक अध्ययन
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नक्षत्रों में किया जाना चाहिए- इसका दिशा-निर्देशन करते हुए आश्वलायनगह्यसूत्र में कहा गया है कि गर्भ के तीसरे महीने तिष्य (पुष्य) नक्षत्र के दिन यह संस्कार किया जाता है।०६ इसी प्रकार कुछ विद्वान् इस संस्कार को पुरुष-नक्षत्र में करने के लिए कहते हैं। पुरुष-नक्षत्र के सम्बन्ध में विद्वानों का एक मत नहीं है। स्मृतिचन्द्रिका द्वारा उद्धृत एक श्लोक में हस्त, मूल, श्रवण, पुनर्वसु, मृगशिरा एवं पुष्य पुरुष-नक्षत्र कहे गए हैं। संस्कारमयूख में उल्लेखित नारदीयसूत्र के अनुसार रोहिणी, पूर्वभाद्रपदा एवं उत्तरभाद्रपदा भी पुरुष-नक्षत्र हैं। इस प्रकार कितने ही मत हैं, जिनके विस्तार में जाना यहाँ अपेक्षित नहीं है।
श्वेताम्बर-परम्परा में अरहन्त परमात्मा की पूजा एवं साधुओं की भक्ति के साथ विधि कराने वाले को दान देकर यह संस्कार सम्पन्न किया जाता है। इसी प्रकार दिगम्बर-परम्परा में भी सुप्रीति नामक संस्कार अरहंत देवाराधन के साथ सम्पन्न करने का निर्देश मिलता है, परन्तु साधुओं की भक्ति एवं क्रियाकारक को दान देने के सम्बन्ध में यहाँ कोई उल्लेख नहीं मिलता है। वैदिक-परम्परा में होम, सेम एवं जौ के साथ दधि-पान एवं स्त्री की नाक में कोई औषधि डालने की क्रियाओं के साथ यह संस्कार सम्पन्न किया जाता है। श्वेताम्बर एवं दिगम्बर-परम्पराओं में इस सम्बन्ध में कोई स्पष्ट निर्देश हमारी जानकारी में नहीं
श्वेताम्बर-परम्परा में इस संस्कार को करते समय कुछ मंत्रों का भी विधान किया है, जैसे- परमात्मा के स्नात्रजल से निम्न मंत्र बोलते हुए गर्भिणी स्त्री के सिर, स्तन एवं उदर को अभिसिक्त करते हैं१२ -
___“ऊँ अर्ह नमस्तीर्थंकरनामकर्मप्रतिबन्धसंप्राप्तसुरासुरेन्द्रपूजायार्हते आत्मने त्वमात्मायुः कर्मबन्ध प्राप्यं तं मनुष्य जन्म गर्भावासमवाप्तोऽसि तद्भवजन्मजरामरणगर्भवास विच्छित्तये प्राप्तार्हद्धर्मोऽर्हद्भक्तः सम्यक्त्वनिश्चलः कुलभूषणः सुखेन तवजन्मास्तु। भवतु तवत्वन्मातापित्रोः कुलस्याभ्युदयः ततः शान्तिः तुष्टिवृद्धिः ऋद्धिः कान्तिः सनातनी, अहँ ऊँ।"
२०६ देखें - धर्मशास्त्र का इतिहास, (प्रथम भाग), पांडुरंग वामन काणे, अध्याय-६, पृ.-१८८ उत्तरप्रदेश हिन्दी
संस्थान, लखनऊ, तृतीय संस्करण : १६८० २१० देखें - धर्मशास्त्र का इतिहास, (प्रथम भाग), पांडुरंग वामन काणे, अध्याय-६, पृ.-१८८ उत्तरप्रदेश हिन्दी
संस्थान, लखनऊ, तृतीय संस्करण : १९८० २" देखें - धर्मशास्त्र का इतिहास, (प्रथम भाग), पांडुरंग वामन काणे, अध्याय-६, पृ.-१८८ उत्तरप्रदेश हिन्दी
संस्थान, लखनऊ, तृतीय संस्करण : १९८० २ आचारदिनकर, वर्धमानसूरिकृत (प्रथम विभाग), उदय-द्वितीय उदय, पृ.-६, निर्णयसागर मुद्रालय, बॉम्बे सन् १६२२ ।
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