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________________ वर्धमानसूरिकृत आचारदिनकर में प्रतिपादित संस्कारों का तुलनात्मक एवं समीक्षात्मक अध्ययन 109 संस्कार का कर्त्ता - आचारदिनकर के अनुसार यह संस्कार जैन-ब्राह्मण या क्षुल्लक द्वारा करवाया जाता है। यहाँ जैन-ब्राह्मण से तात्पर्य७२ - अर्हत् मंत्र से उपनीत ब्राह्मण से है एवं क्षुल्लक का तात्पर्य७३ - ऐसे गृहस्थ से है, जिसने तीन वर्ष तक विशुद्ध ब्रह्मचर्य का पालन करने के पश्चात् तीन वर्ष की अवधि के लिए पंचमहाव्रतों को दो करण एवं तीन योग से पालन करने का नियम लिया हो। वर्धमानसूरि ने आचारदिनकर में ऐसे व्यक्ति को क्षुल्लक कहा है। चूँकि श्वेताम्बर-परम्परा में गर्भाधान-संस्कार का सम्बन्ध गर्भस्थापन से नहीं था, अतः इस संस्कार को कराने का अधिकार क्षुल्लक या जैन-ब्राह्मण (विधिकारक) को प्राप्त था। यद्यपि इस संस्कार की विधि में गर्भवती स्त्री के साथ उसके पति की भी उपस्थिति मानी गई थी। दिगम्बर-परम्परा में यह संस्कार कौन करवाए, इस सम्बन्ध में आदिपुराण में यह कहा गया है कि जिसे विद्याएँ सिद्ध हो गईं हैं, जो सफेद वस्त्र पहने हुए है, पवित्र यज्ञोपवीत धारण किए हुए है और जिसका चित्त आकुलता से रहित है- ऐसा द्विज इन मंत्रों के द्वारा ये समस्त क्रियाएँ करवा सकता है, किन्तु ज्ञातव्य है कि गर्भाधान हेतु सम्भोगक्रिया तो पति ही कर सकता था। __ वैदिक-परम्परा में यह संस्कार कौन करवाए - इस सम्बन्ध में बहुत मतभेद हैं। प्राचीन विद्वानों के अनुसार प्रायः पति ही इस संस्कार का कर्ता होता था, किन्तु उसकी अनुपस्थिति में उसका प्रतिनिधित्व करने वाला व्यक्ति भी विहित माना गया था। प्राचीनकाल में हिन्दू-परम्परा में नियोग-प्रथा प्रचलित थी, क्योंकि कुल-परम्परा को अक्षुण्ण रखने हेतु और मृत पूर्वजों के लौकिक तथा पारलौकिक-क्रियाकर्म के लिए, यथा- श्राद्ध, तर्पण, पिण्ड, आदि की क्रिया हेतु सन्तति का होना आवश्यक था और इसी उद्देश्य को लेकर स्मृतियों में विधवा, नपुंसक की स्त्री या अयुक्त पति की पत्नी को देवर, सगोत्र या ब्राह्मण द्वारा आचारदिनकर, वर्धमानसूरिकृत (प्रथम विभाग), उदय-प्रथम, पृ.-५ निर्णयसागर मुद्रालय, बॉम्बे, सन् १६२२ ७३ आचारदिनकर, वर्धमानसूरिकृत (प्रथम विभाग), उदय-अठारहवाँ उदय, पृ.-७२ निर्णयसागर मुद्रालय, बॉम्बे सन् १९२२ * आदिपुराण, जिनसेनाचार्यकृत, अनु.-डॉ. पन्नालाल जैन, पर्व-चालीसवाँ, पृ.-३०१, भारतीय ज्ञानपीठ, सातवाँ संस्करण - २००० Jain Education International . For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001671
Book TitleJain Sanskar Evam Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Vidhi, & Culture
File Size24 MB
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