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________________ वर्धमानसूरिकृत आचारदिनकर में प्रतिपादित संस्कारों का तुलनात्मक एवं समीक्षात्मक अध्ययन 99 कर्णवेध-संस्कार - आचारदिनकर के अनुसार यह संस्कार शुभ वर्ष, मास, आदि देखकर कुलपरम्परा के अनुसार बालक के तीसरे, पाँचवें या सातवें वर्ष में किया जाता है। दिगम्बर-परम्परा के आदिपुराण में हमें इस नाम के संस्कार का कोई उल्लेख नहीं मिलता है। हिन्दू-परम्परा में यह संस्कार विशेष रूप से परवर्ती काल में प्रचलित हुआ है। वैदिक-परम्परा में इस संस्कार के समय के सम्बन्ध में मतभेद हैं, किन्तु कात्यायनसूत्र के अनुसार शिशु के जन्म के तृतीय या पंचम वर्ष में कर्णवेध-संस्कार किया जाना उचित है। चूड़ाकरण-संस्कार - आचारदिनकर४६ के अनुसार यह संस्कार अपनी कुलविधि के अनुसार शुभ दिनों में करना चाहिए। हिन्दू-परम्परा में यह संस्कार शिशु के जन्म के प्रथम या तृतीय वर्ष की समाप्ति के पूर्व किया जाता है। दिगम्बर-परम्परा के आदिपुराण में इस संस्कार को किए जाने के समय का उल्लेख नहीं मिलता है। उपनयन-संस्कार - यह संस्कार कब किया जाना चाहिए? इस सम्बन्ध में आचारदिनकर में कोई सूचना नहीं दी गई है। दिगम्बर-परम्परा में यह संस्कार गर्भ के आठवें मास में किया जाता है।४७ वैदिक-परम्परा के आश्वलायन-गृह्यसूत्र में ब्राह्मणकुमार का आठ वर्ष में, क्षत्रिय का ग्यारह वर्ष एवं वैश्य का बारहवें वर्ष में यह संस्कार करने का निर्देश दिया गया है।४८ विद्यारम्भ-संस्कार - आचारदिनकर के अनुसार यह संस्कार उपनयन-संस्कार की भाँति शुभदिन एवं शुभलग्न में किया जाना चाहिए। इस संस्कार का मूल उद्देश्य उपनयन-संस्कार से दीक्षित एवं वर्णत्व को प्राप्त बालक को भाषा एवं लेखन का आचारदिनकर, वर्धमानसूरिकत, उदय-दसवाँ, पृ.-१७, निर्णयसागर मुद्रालय, बाम्बे, प्रथम संस्करण १६२२. " देखेः हिन्दू संस्कार, डॉ. राजबली पाण्डेय, अध्याय-षष्ठं (षष्ठं परिच्छेद), पृ.-१३०, चौखम्भा विद्या भवन, वाराणसी, पांचवाँ संस्करण १६६५. १४६ आचारदिनकर, वर्धमानसूरिकृत, उदय-ग्यारहवाँ, पृ.-१८, निर्णयसागर मुद्रालय, बाम्बे, प्रथम संस्करण १६२२. आदिपुराण, जिनसेनाचार्यकृत, अनु : डॉ. पन्नालाल जैन, पर्व-अड़तीसवाँ, पृ.-२४८, भारतीय ज्ञानपीठ, सातवाँ संस्करण २०००. धर्मशास्त्र का इतिहास (प्रथम भाग), पांडुरंग वामन काणे, अध्याय-७, पृ.-२११, उत्तरप्रदेश हिन्दी संस्थान, लखनऊ, तृतीय संस्करण १९८०. ६ आचारदिनकर, वर्धमानसूरिकृत, उदय-तेरहवां, पृ.-३०, निर्णयसागर मुद्रालय, बॉम्बे, प्रथम संस्करण १६२२. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001671
Book TitleJain Sanskar Evam Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Vidhi, & Culture
File Size24 MB
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