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________________ 100 साध्वी मोक्षरत्ना श्री ज्ञान कराया जाना है। हिन्दू-परम्परा के अनुसार उपनयन-संस्कार के पश्चात् उसी दिन या उससे एक दिन पश्चात् गुरुदेव-स्तुति के पश्चात् ब्रह्मचारी को गायत्री-मंत्र का उपदेश देकर शिक्षा प्रदान की जाती है। दिगम्बर-परम्परा में यह संस्कार (१) लिपिसंख्यान एवं (२) व्रतचर्याक्रिया-इन दो चरणों में संपन्न किया जाता है। १५० विवाह-संस्कार - आचारदिनकर के अनुसार कन्या का विवाह आठ वर्ष बाद कर देना चाहिए, किन्तु पुरुष का विवाह आठ वर्ष से लेकर अस्सी वर्ष की आयु के बीच कभी भी हो सकता है। जैन-परम्परा में विवाह को अनिवार्य संस्कार नहीं माना गया है, जबकि हिन्दू-परम्परा के स्मृतिग्रन्थों में तो पुरुष को अनिवार्य रूप से विवाह करने का निर्देश दिया गया है, क्योंकि इसके अभाव में वह अपत्नीक पुरुष अयज्ञीय कहलाता है।५२ हिन्दू-परम्परा में पुरुष के विवाह के लिए कोई निश्चित अवधि नहीं रखी गई है, परन्तु कन्या के लिए विवाह की अवधि का निर्धारण किया गया है। गृह्यसूत्रों एवं धर्मसूत्रों के अनुसार सामान्यतः लड़कियों को युवावस्था के बिल्कुल पास पहुँच जाने या उसके प्रारम्भ होने पर ही विवाह योग्य माना जाता था।५३ दिगम्बर-परम्परा में भी इस संस्कार का उल्लेख मिलता है। वहाँ बारह वर्ष की कन्या एवं सोलह वर्ष के किशोर को विवाह के योग्य माना व्रतारोपण-संस्कार - __ यह संस्कार जैन-परम्परा में ही पाया जाता है। वर्धमानसूरि के अनुसार इस लोक में गर्भ से लेकर विवाह तक के चौदह संस्कारों से संस्कारित व्यक्ति भी व्रतारोपण-संस्कार के बिना इस जन्म में लक्ष्मी का सदुपयोग नहीं कर पाता है। वह जगत् में प्रशंसा का पात्र नहीं होता है तथा आर्यदेश में मनुष्यजन्म की प्राप्ति, स्वर्ग एवं मोक्ष के सुख से भी वंचित रहता है, अतः मनुष्यों के लिए व्रतारोपण-संस्कार परम कल्याणकारक है। हिन्दू-परम्परा में यद्यपि चार वेदव्रतों का १५० आदिपुराण, जिनसेनाचार्यकृत, अनु : डॉ. पन्नालाल जैन, पर्व-अड़तीसवाँ, पृ.-२४४, भारतीय ज्ञानपीठ, सातवाँ संस्करण २०००. " आचारदिनकर, वर्धमानसूरिकृत, उदय-चौदहवाँ, पृ.-३१, निर्णयसागर मुद्रालय, बॉम्बे, प्रथम संस्करण १६२२. १५२ हिन्दू संस्कार, डॉ. राजबली पाण्डेय, अध्याय-अष्टम, पृ.-१६५, चौखम्भा विद्या भवन, वाराणसी, पंचम संस्करण १६६५. १५३ धर्मशास्त्र का इतिहास (प्रथम भाग), पांडुरंग वामन काणे, अध्याय-६, पृ.-२७३, उत्तरप्रदेश हिन्दी संस्थान, लखनऊ, तृतीय संस्करण १९८०. ५" हरिवंशपुराण एक सांस्कृतिक अध्ययन, राममूर्ति चौधरी, अध्याय-२, पृ.-४४, सुलभ प्रकाशन, लखनऊ, प्रथम संस्करण १६८६. १५५ आचारदिनकर, वर्धमानसूरिकृत, उदय-पन्द्रहवाँ, पृ.-४२, निर्णयसागर मुद्रालय, बॉम्बे, प्रथम संस्करण १६२२. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001671
Book TitleJain Sanskar Evam Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Vidhi, & Culture
File Size24 MB
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