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वर्धमानसूरिकृत आचारदिनकर में प्रतिपादित संस्कारों का तुलनात्मक एवं समीक्षात्मक अध्ययन
जातकर्म - संस्कार
आचारदिनकर" १३३ के अनुसार यह संस्कार गर्भकाल के अपेक्षित मास, दिन की कालावधि के पूर्ण होने पर जब शिशु का प्रसव होता है, उस समय किया जाता है। इस संस्कार का मूल उद्देश्य आनंद की अभिव्यक्ति करना है। दिगम्बर - परम्परा में भी यह संस्कार शिशु के जन्म के बाद ही किया जाता है, किन्तु दिगम्बर- परम्परा में इस संस्कार को जातकर्म - संस्कार के नाम से अभिहित न करके वहाँ उसे प्रियोद्भव - क्रिया के नाम से सूचित किया गया है । १३४ हिन्दू-परम्परा में पुत्र का जन्म होने पर यह संस्कार किया जाता है ।
सूर्य-चन्द्र-दर्शन- संस्कार -
आचारदिनकर" के अनुसार शिशु के जन्म के पश्चात् तीसरे दिन यह संस्कार किया जाता है। हिन्दू परम्परा में भी यह संस्कार किया जाता है, वहाँ यह संस्कार निष्क्रमण - संस्कार के रूप में सम्पन्न किया जाता है । १३६ जन्म के चौथे मास में, अथवा तीसरे मास में क्रमशः सूर्य-चन्द्र-दर्शन करवाकर यह संस्कार सम्पन्न किया जाता है। दिगम्बर- परम्परा में सूर्य-चन्द्र-दर्शन करवाने के उल्लेख नहीं मिलते हैं।
क्षीराशन- संस्कार
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आचारदिनकर" के अनुसार यह संस्कार जन्म के तीसरे दिन करवाया जाता है। वैदिक एवं दिगम्बर- परम्परा में क्षीराशन- संस्कार को पृथक् रूप से नहीं किया जाता है। इन दोनों परम्पराओं में यह विधान जातकर्म - संस्कार के साथ ही सम्पन्न कर दिया जाता है।
षष्ठी - संस्कार
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आचारदिनकर१३८ के अनुसार यह संस्कार जन्म के छठवें दिन किया जाता है। यह संस्कार शिशु का मंगल करने के उद्देश्य से किया जाता है। इस संस्कार में षष्ठी माता (दुर्गा) आदि देवियों की पूजा की जाती है। दिगम्बर- परम्परा
किन्तु
वहाँ
१३३ आचारदिनकर, वर्धमानसूरिकृत, उदय तृतीय, पृ. ६, निर्णयसागर मुद्रालय, बॉम्बे, प्रथम संस्करण १६२२. १३४ आदिपुराण, जिनसेनाचार्यकृत, अनु. - डॉ. पन्नालाल जैन, पर्व- अड़तीसवां, पृ. २४६, भारतीय ज्ञानपीठ, सातवाँ संस्करण २०००.
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१३५ आचारदिनकर, वर्धमानसूरिकृत, उदय-चौथा, पृ. ११, निर्णयसागर मुद्रालय, बॉम्बे, प्रथम संस्करण १६२२. १३६ धर्मशास्त्र का इतिहास ( प्रथम भाग ), पांडुरंग वामन काणे, अध्याय-६, पृ. २०१-०२ उत्तरप्रदेश हिन्दी संस्थान, लखनऊ, तृतीय संस्करण १६८०.
१३७ आचारदिनकर, वर्धमानसूरिकृत, उदय पांचवा, पृ. १२, निर्णयसागर मुद्रालय, बॉम्बे, प्रथम संस्करण १६२२. आचारदिनकर, वर्धमानसूरिकृत, उदय-छठवाँ, पृ. १२, निर्णयसागर मुद्रालय, बॉम्बे, प्रथम संस्करण १६२२.
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