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________________ साध्वी मोक्षरत्ना श्री यदि स्त्रियों के सम्बन्ध में ये संस्कार करने हों, तो उनको वैदिक मंत्रों का उच्चारण किए बिना करना चाहिए। १२६ 96 उपर्युक्त सामान्य चर्चा करने के पश्चात् अब हम आचारदिनकर में वर्णित संस्कारों का निम्न बिन्दुओं के माध्यम से दिगम्बर एवं वैदिक परम्परा में स्वीकृत संस्कारों के साथ तुलना एवं समीक्षा करेंगे - गर्भाधान-संस्कार १२८ आचारदिनकर" के अनुसार गर्भस्थापन के पाँचवें मास में शुभ तिथि, वार, नक्षत्र, आदि तथा पति के चंद्रबल को देखकर गर्भाधान-संस्कार किया जाना चाहिए | हिन्दू परम्परा में यह संस्कार गर्भस्थापन से पूर्व, उत्तम गुणों से युक्त पुत्र की प्राप्ति के लिए किया जाता है, किन्तु आचारदिनकर के अनुसार यह संस्कार गर्भ की प्रसिद्धि तथा गर्भरक्षण के लिए किया जाता है। दिगम्बर - परम्परा में भी यह संस्कार किया जाता है, किन्तु उसमें इस संस्कार की अवधारणा यत्किंचित् हिन्दू - परम्परा के सदृश है, अर्थात् वहाँ भी यह संस्कार गर्भस्थापन के पूर्व सन्तान की प्राप्ति के उद्देश्य से किया जाता है। १२६ पुंसवन संस्कार १३० आचारदिनकर' के अनुसार गर्भ के आठ मास व्यतीत हो जाने पर तथा सर्वदोहद (गर्भवती स्त्री की कामनाएँ) पूर्ण होने के पश्चात् गर्भस्थ शिशु के सम्पूर्ण अंगोपांग पूर्णतः विकसित होने पर शरीर में पूर्णीभाव प्रमोदरूप स्तनों में दूध की उत्पत्ति के सूचकार्थ यह संस्कार किया जाता है, जबकि हिन्दू परम्परा में यह संस्कार गर्भ के तीसरे मास में सन्तान पुत्ररूप हो - इस उद्देश्य से किया जाता है। १३१ दिगम्बर-परम्परा में सुप्रीति क्रिया के रूप में यह संस्कार किया जाता है । १३२ १२६ प्राचीन भारतीय संस्कृति के मूलतत्त्व, डॉ. बाबूराम त्रिपाठी एवं डॉ. श्री भगवान शर्मा, पृ. ५६, महालक्ष्मी प्रकाशन, आगरा, तृतीय संस्करण. १२७ 'आचारदिनकर, वर्धमानसूरिकृत, उदय प्रथम, पृ. ५, निर्णयसागर मुद्रालय, बॉम्बे, प्रथम संस्करण १६२२. १२८ धर्मशास्त्र का इतिहास ( प्रथम भाग ), पांडुरंग वामन काणे, अध्याय - ६, पृ. १८१, उत्तरप्रदेश हिन्दी संस्थान, १२६ लखनऊ, तृतीय संस्करण १६८०. आदिपुराण, जिनसेनाचार्यकृत, अनु. - डॉ. पन्नालाल जैन, पर्व-अड़तीसवाँ, पृ. २४५, भारतीय ज्ञानपीठ, सातवाँ संस्करण २०००. १३२ १३० आचारदिनकर, वर्धमानसूरिकृत, उदय 939 प्रथम, पृ. ८, निर्णयसागर मुद्रालय, बॉम्बे, प्रथम संस्करण १६२२. धर्मशास्त्र का इतिहास ( प्रथम भाग ), पांडुरंग वामन काणे, अध्याय - ६, पृ. १८८, उत्तरप्रदेश हिन्दी संस्थान, लखनऊ, तृतीय संस्करण १६८०. आदिपुराण, जिनसेनाचार्यकृत, अनु. - डॉ. पन्नालाल जैन, पर्व- अड़तीसवाँ, पृ. २४६, भारतीय ज्ञानपीठ, सातवाँ संस्करण २०००. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001671
Book TitleJain Sanskar Evam Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Vidhi, & Culture
File Size24 MB
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