SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 99
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वर्धमानसूरिकृत आचारदिनकर में प्रतिपादित संस्कारों का तुलनात्मक एवं समीक्षात्मक अध्ययन 'आचारदिनकर' में वर्णित संस्कारों का तुलनात्मक विवेचन - आचारदिनकर में वर्णित चालीस संस्कारों का दिगम्बर एवं वैदिक-परम्परा में वर्णित संस्कारों के साथ तुलना एवं समीक्षा का संक्षिप्त विवरण हम यहाँ प्रस्तुत कर रहे हैं। विस्तृत विवरण तो यथास्थान किया जाएगा। तीनों परम्पराओं में कौन-कौनसे संस्कार कब एवं किस समय किए जाते हैं? तीनों परम्पराओं की इस सम्बन्ध में क्या अवधारणा है? इस विषय को हम इस बिन्दु के अन्तर्गत विवेचित करने का प्रयत्न करेंगे, किन्तु इससे पूर्व हमें यह जान लेना भी आवश्यक है कि तीनों परम्पराओं में ये संस्कार किस प्रयोजन से किए जाते थे, चारों वर्ण में से कौन-कौनसे वर्ण के लोग इन संस्कारों के अधिकारी माने गए हैं, इत्यादि। सामान्यतया, इन संस्कारों को करने का प्रयोजन समाज की सुव्यवस्था को स्थापित करना ही था। जैनधर्म में गृहस्थ के संस्कारों का आध्यात्मिक-विकास से कोई सम्बन्ध नहीं माना गया है, अपितु एक सामाजिक-व्यवस्था के रूप में इन्हें स्वीकार किया गया है। मुनिजीवन के षोडश संस्कार एवं आठ सामान्य संस्कारों में से कुछ संस्कार यथा-प्रव्रज्या, उपस्थापना, योगोद्वहन, भिक्षुओं की बारह प्रतिमाओं की उद्वहनविधि, प्रायश्चित्तविधि, आवश्यकविधि, आदि का अवश्य आध्यात्मिक विकास के साथ आंशिक सम्बन्ध माना जा सकता है। हिन्दू-परम्परा में इन्हें सामाजिक एवं धार्मिक रूप में स्वीकृत किया गया है। हिन्दू-परम्परा में षोडश संस्कारों का अधिकारी मात्र ब्राह्मणों, क्षत्रियों एवं वैश्यों के पुरुष-वर्ग को ही माना गया था, किन्तु जैन-परम्परा में तो चारों ही वर्ण के लोगों को इन संस्कारों का अधिकारी माना गया है, अपितु यह भी माना है कि संस्कारों, विशेष रूप से उपनयन-संस्कार द्वारा वर्ण-परिवर्तन एवं निर्धारण भी होता है, किन्तु वैदिक-परम्परा में वर्ण-परिर्वतन एवं निर्धारण की अवधारणा को स्वीकार नहीं किया गया है। जैन-परम्परा में कन्या के सम्बन्ध में भी गृहस्थ के संस्कारों को किए जाने के उल्लेख मिलते हैं,२५ क्योंकि जैन-परम्परा में पुरुष के समान ही स्त्री को भी समान महत्व प्रदान किया गया है और यही कारण है कि जैन-परम्परा में स्त्री हेतु भी इन संस्कारों के किए जाने का निर्देश दिया गया है। वैदिक-परम्परा में मंत्रोच्चारपूर्वक ये षोडश संस्कार पुरुषों के सम्बन्ध में ही किए जाने के निर्देश दिए गए हैं, क्योंकि वे पुरुष एवं स्त्री को एक समान नहीं मानते हैं। उनके अनुसार * ज्ञाताधर्मकथा, मधुकरमुनि, सूत्र सं.-८/३१, आगम प्रकाशन समिति, ब्यावर (राज.), प्रथम संस्करण : १६६२. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001671
Book TitleJain Sanskar Evam Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Vidhi, & Culture
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy