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प्राकृत-दीपिका
नवम अध्याय
• (५) सह, समं, सारं और सद्ध के योग में अप्रधान ( जो कर्ता का साथ
देता है ) में। जैसे-पुत्तेण सह आअओ पिआ (पुत्रेण सह आगतः पिता-पुत्र के साथ पिता आया) । लक्खणो रामेण सारं समं सद्ध वा गच्छइ (लक्ष्मणः रामेण साकं समं साद्ध वा गच्छति-लक्ष्मण राम के साथ जाता है)।
(६) पिधं ( पृथक् ), विना और नाना (=विना ) शब्दों के योग में तृतीया, द्वितीया तथा पञ्चमी होती हैं। जैसे --पिधं रामेण रामं रामत्तो वा (पृथक रामेण रामं रामात् वा=राम से अलग )। जलं विना कमलं चिट्ठ ण सक्कइ ( जलं विना कमलं स्थातु न शक्नोति जल के विना कमल ठहर नहीं सकता है)।
(७) जिस विकृत अङ्ग के द्वारा अङ्गी में विकार मालूम हो, उस अङ्ग में । जैसे--पाएण खंजो, कण्णण बहिरो (पादेन खञ्जः कर्णेन बधिरः-पैर से लंगड़ा और कान से बहरा)।
(८) जिस हेतु ( प्रयोजन ) से कोई कार्य किया जाये, उस हेतु-वाचक में । जैसे-दंडेण घडो जाओ ( दण्डेन घटो जातः = दण्डे के कारण घड़ा उत्पन्न हुआ)। पुणेण दिट्टो हरी (पुण्येन दृष्टो हरि:म्भाग्य से हरि के दर्शन हुए)। अज्झयणेण वसइ (अध्ययनेन वसति-अध्ययन के हेतु से रहता है)।
(९) जिस चिह्न-विशेष से किसी को पहचाना जाये, उसमें" । जैसेबडाहि तावसो ( जटाभिः तापसः - जटाओं से तपस्वी प्रतीत होता है)।
चतुर्थी विभक्ति निम्न स्थलों में चतुर्थी विभक्ति होती है (प्राकृत में चतुर्थी के स्थान । पर षष्ठी होने से वस्तुतः षष्ठी विभक्ति होती है )-- १. सहयुक्तेऽप्रधाने । अ० २. ३. १९. २. पृथग्विनानानाभिस्तृतीयाऽन्यतरस्याम् । अ० २. ३. ३२. ३. येनाङ्गविकारः । अ० २. ३. २०. ४. हेतो। अ० २. ३.२३. ५. इ त्थंभतलक्षणे । अ० २. ३. २१.
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