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कारक एवं विभक्ति ]
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किसणं ( अभितः परितः वा कृष्णम् = कृष्ण के दोनों ओर अथवा चारों ओर ) । गामं समया (ग्रामं समया - गांव के पास ) । निकहा लंक ( निकषा लङ्काम्= लङ्का के समीप ) । हा जिणामत्तं ( धिक् जिणाभक्तम् जिनेन्द्र देव के अनुपासक को धिक्कार है ) ।
भाग १ : व्याकरण
तृतीया विभक्ति
निम्न स्थलों में तृतीया विभक्ति होती है
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(१) करण कारक ( कर्ता को क्रिया की सिद्धि में सबसे अधिक सहायक ) में' । जैसे- रामेण बाणेण हओ वाली (रामेण बाणेन हतो वालि 1 राम के द्वारा बाण से वाली मारा गया ) । यहाँ वाली को मारने में कर्ता को सर्वाधिक सहायक बाण है, अतः उसमें तृतीया विभक्ति हुई है । बालो जलेण मुहं पच्छालइ ( बालो जलेन मुखं प्रक्षालयति बालक जल से मुख धोता है ) ।
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(२) कर्मवाच्य एवं भाववाच्य के कर्ता में जैसे - (क) कर्मवाच्य में - रामेण बाण हओ वाली । (ख) भाववाच्य में - मए गम्मइ ( मया गम्यते = मेरे द्वारा जाया जाता है ) ।
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(३) प्रकृत्यादि शब्दों में । जैसे-पइईअ चारू ( प्रकृत्या चारुः = स्वभाव से मनोहर ) । रसेण महुरो ( रसेन मधुरः = रस से मीठा ) । गोतेण गग्गो ( गोत्रेण गर्गः गोत्र से गर्ग ) ।
( ४ ) कालवाचक और मार्गवाचक शब्दों में यदि अत्यन्त संयोग के साथ फलप्राप्ति भी हो । जैसे - वुवालसबरसे हि वाअरणं सुणइ ( द्वादशवर्षेः व्याकरणं श्रूयते -बारह वर्षों तक व्याकरण सुनता है ) । फल प्राप्ति न होने पर द्वितीया होती है ।
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१. साधकतमं करणम् । कर्तृ करणयोस्तृतीया । अ० १. ४.४२; २.३.१८. २.. वही ।
३. प्रकृत्यादिभ्य उपसंख्यानम् । वार्तिक ।
४. कालाध्वनोरत्यन्तसंयोगे । अपवर्गे तृतीया । अ० २. ३. ५-६.
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