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________________ कारक एवं विभक्ति ] [ ६७ किसणं ( अभितः परितः वा कृष्णम् = कृष्ण के दोनों ओर अथवा चारों ओर ) । गामं समया (ग्रामं समया - गांव के पास ) । निकहा लंक ( निकषा लङ्काम्= लङ्का के समीप ) । हा जिणामत्तं ( धिक् जिणाभक्तम् जिनेन्द्र देव के अनुपासक को धिक्कार है ) । भाग १ : व्याकरण तृतीया विभक्ति निम्न स्थलों में तृतीया विभक्ति होती है - (१) करण कारक ( कर्ता को क्रिया की सिद्धि में सबसे अधिक सहायक ) में' । जैसे- रामेण बाणेण हओ वाली (रामेण बाणेन हतो वालि 1 राम के द्वारा बाण से वाली मारा गया ) । यहाँ वाली को मारने में कर्ता को सर्वाधिक सहायक बाण है, अतः उसमें तृतीया विभक्ति हुई है । बालो जलेण मुहं पच्छालइ ( बालो जलेन मुखं प्रक्षालयति बालक जल से मुख धोता है ) । । (२) कर्मवाच्य एवं भाववाच्य के कर्ता में जैसे - (क) कर्मवाच्य में - रामेण बाण हओ वाली । (ख) भाववाच्य में - मए गम्मइ ( मया गम्यते = मेरे द्वारा जाया जाता है ) । = (३) प्रकृत्यादि शब्दों में । जैसे-पइईअ चारू ( प्रकृत्या चारुः = स्वभाव से मनोहर ) । रसेण महुरो ( रसेन मधुरः = रस से मीठा ) । गोतेण गग्गो ( गोत्रेण गर्गः गोत्र से गर्ग ) । ( ४ ) कालवाचक और मार्गवाचक शब्दों में यदि अत्यन्त संयोग के साथ फलप्राप्ति भी हो । जैसे - वुवालसबरसे हि वाअरणं सुणइ ( द्वादशवर्षेः व्याकरणं श्रूयते -बारह वर्षों तक व्याकरण सुनता है ) । फल प्राप्ति न होने पर द्वितीया होती है । Jain Education International १. साधकतमं करणम् । कर्तृ करणयोस्तृतीया । अ० १. ४.४२; २.३.१८. २.. वही । ३. प्रकृत्यादिभ्य उपसंख्यानम् । वार्तिक । ४. कालाध्वनोरत्यन्तसंयोगे । अपवर्गे तृतीया । अ० २. ३. ५-६. For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001669
Book TitlePrakrit Dipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2005
Total Pages298
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size13 MB
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