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________________ प्राकृत-दीपिका [ अष्टम अध्याय तहेव (तथैव) उसी तरह परसवे ( परश्वः ) परसों आने वाला तिरियं (तिर्यक्) तिरछा परितो ( परितः) चारों ओर ती (अतीतम्) बीता हुआ . परोप्पर, परप्परं (परस्परम्) आपस में तु (तु) किन्तु पसय्ह (प्रसह्य ) जबर्दस्ती तेण (तेन) जेण के समान (भमररुअं पाडिक्कं, पाडिएक्कं (प्रत्येकम) प्रत्येक तेण कमलवणं) थू (थूत्) कुत्सा-घृणा पातो ( प्रातः ) प्रातःकाल पायो, पाओ ( प्रायः ) बहुधा दर--आधा, थोड़ा, ( दर विअसि= । . अर्धमीषद्वा विकसितम् ) पि ( अपि ) भी दिवारत्तं ( दिवारात्रम् ) दिन रात पुण, पुणो ( पुनः ) फिर दुहओ, दुहा (द्विधा ) दो प्रकार पुणरुत्तं-किए हुए को बारंबार करना दे--संमुखीकरण एवं सखि-आमन्त्रण (पेच्छ पुणरुत्तं-बारबार देखो) (दे पसिअ ताव सुन्दरि हे सुन्दरि पुणरवि ( पुनरपि) फिर भी प्रसीद तावत् । दे आ पसिअ निअ- पुरओ ( पुरतः ) आगे, सम्मुख त्तसु-हे सखि ! आ प्रसीद पुरत्था (पुरस्तात्) आगे, सम्मुख . . निवर्तस्व) पुरा ( पुरा) पहले धुवं ( ध्रुवं ) निश्चय पुहं, पिहं ( पृथक् ) अलग धाह ( धिक् ) निर्वेद तिरस्कार पेच्च ( प्रेत्य ) परलोक में णिच्चं, निच्च ( नित्यम् ) हमेशा बले--निर्धारण एवं निश्चय ( बले पइदिणं ( प्रतिदिनम् ) प्रतिदिन पुरिसो धणंजओ खत्तिआणं क्षत्रियों पच्चुअ ( प्रत्युत ) विपरीत में वास्तविक पुरुष धनञ्जय है । बले पगे--प्रातःकाल में सीहो-सिंह एवायम्=यह सिंह ही है). पच्छा (पश्चात् ) पीछे बहिं (बहिः ) बाहर .पडिरूवं (प्रतिरूपम् ) समान भुज्जो ( भूयः ) बार-बार 'परज्जु ( परेध : ) कल, दूसरे दिन मणयं ( मनाक् ) थोड़ा परं (परम् ) परन्तु मणे, मण्णे ( मन्ये ) वितर्क परंमुहं ( पराङ मुखम् ) विमुख मुसा ( मृषा ) झूठ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001669
Book TitlePrakrit Dipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2005
Total Pages298
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size13 MB
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