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अध्यय एवं उपसर्ग]
भाग १: व्याकरण
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मो-सूचना, पश्चाताप
पर उससे सम्बन्धित अन्य वस्तु की कओ (कुतः) कहाँ से
कल्पना (भमररुसं जेण कमलवणं - कत्थइ ( कुत्रचित् ) कहीं
भ्रमर का शब्द होने से कमल का कल्लं (कल्यम्) कल ( आने वाला)
वन है) कह, कहं (कथम्) कैसे
जेव, ज्जेव, ज्जेव्व, जेव्व (एव)निश्चय कहि, कहिं (कुत्र) कहाँ
शत्ति (झटिति) शीघ्र काहे (कर्हि) कब, किस समय
ण (न) निषेध किगा, किण्णा, किणो (किन्नु) प्रश्न पवि-वपरीत्य किर, किल, इर, हिर( किल ) निश्चय पह-अवधारण (गईए णइ गत्या एव
गति से ही) केवच्चिरं केवच्चिरेण ( कियच्चिरम् णं (नं) वाक्यालंकार कियच्चिरेण ) कितनी देर से ।
णमो (नमः) नमस्कार केवलं (केवलम्) सिर्फ
णवर, णवरं-केवल (गवर पिआईखलु, खु, हु (खलु) निश्चय, वितर्क,
केवलं प्रियाणि) संभावना, विस्मय णवरि-अनन्तर (णवरि अ से रहुवचिअ, च्च, चेअ, जेव, ज्जेव, ज्जेव्व,
इणा- अनन्तरं च तस्य रघुपतिना) जेव्व (एव) निश्चय ही
पाई, अण (न) नहीं।
णाणा (नाना) अनेक जह (यदि) जो
पूर्ण, णूण (नूनम्) निश्चय जओ (यतः) क्योंकि
णो (नो) निषेध जत्थ (यत्र) जहाँ
तए, ताहे (तदा) तब जह, जहा (यथा) जैसे
तबो, तत्तो, सतो (ततः) इसके बाद जहेव (यथैव) जिस प्रकार से
तं (अथ) वाक्यारम्भ में शोभारूप (तं जं (यत्) जो, क्योंकि
तिअसवंदिमोक्खं अथ त्रिदशबंदि. जाव (यावत्) जब तक
मोक्षम जे, इ, र-पादपूरक
तत्थ, तहिं, तहि (त्र) वहाँ जेण (येन) किसी एक वस्तु को जान- तह, तहा (तथा) उस तरह
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