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________________ ५४] प्राकृत-दीपिका [अष्टम अध्याय अव्वो-सूचना; दुःख, संभाषण, अप- इव, भिव, पिव; विव, स्व, व, विअ राध, विस्मय, आनन्द, आदर, ( इव ) सादृश्य भय, खेद, विषाद,पश्चात्ताप इह (इह ) यहाँ अवस्सं ( अवश्यम् ) अवश्य इहरा, इयरथा ( इतरथा ) अन्यथा अवरि ( उपरि ) ऊपर ईसिं, ईसि (ईषत्) थोड़ा पि, वि, अपि (अपि) प्रश्न, सम्भावना उअ-देखो (उअ णिच्चलणिप्फंदा - समुच्चय पश्य निश्चलनिष्पन्दा) असई ( असकृत् ) कई बार उअ (उत्) विकल्प, प्रश्न अह ( अथ ) पश्चात् उच्चअ ( उच्चैः ) उन्नत अह, अहे ( अधस् ) नीचे उरिं, उवरि, उप्पि (उपरि) ऊपर अहत्ता, हेट्ठा ( अधस्तात् ) नीचे ऊ-गार्हा निन्दा, आक्षेप-तिरस्कार, विस्मय, सूचना ( ऊ पिल्लज्ज - अहई. ( अथ किम् ) और क्या अरे धिक निर्लज्ज। ऊ कि मए अहत्ता ( अधस्तात् ) नीचे भणिअं-ऊ, कि मया भणितम ? अहव, अहवा, अदुवा, अदुव (अथवा) ऊ कह मुणिआ अहय ऊ कथं ज्ञाता अहम् ? ऊ केण न अहुणा ( अधुना ) इस समय विण्णायं - ऊ केन न विज्ञातम् ) अहे, अह ( अधः ) नीचे एअं ( एतत् ) यह आम ( ओम् ) स्वीकृतिसूचक ( आम एकइआ, एक्कइआ, एक्कया, एगइया, । बहला वणोली हाँ, यह सघन एगदा ( एकदा ) एक समय वनपंक्ति है) एक्कसरिअं-शीघ्र, सम्प्रति इ, जे, र-पादपूरक एगयओ (एकैकतः) एक-एक इओ ( इत: ) यहाँ से एतावता, एयावया (एतावता) इतना इच्चत्थो ( इत्यर्थः) भावार्थ एत्थं, एत्थ, इत्थ (अत्र) यहाँ इत्थ ( अत्र ) यहाँ एव (एव) ही इयाणि ( इदानीम् ) इस समय एवं (एवम्) इस तरह इर (किल ) निश्चय एमेव, एवमेव (एवमेव) इसी तरह पक्षान्तर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001669
Book TitlePrakrit Dipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2005
Total Pages298
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size13 MB
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