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प्राकृत-दीपिका
[वष्ठ अध्याय
होते हैं। ये चारों प्रत्यय संस्कृत के तरप्, तमप्, ईयसुन्, और इष्ठन् के ही प्राकृत रूप हैं।' जैसे
विशेषण शब्द तरप् (अर) तमप् (अम) अहिम (अधिक) . अहिअर
अहिअमम अप्प (अल्प) अप्पअर
अप्पअम हलु (लघु) हलुअर
हलुअम उज्जल (उज्ज्वल) उज्जलअर
उज्जलअम तिक्ख (तीक्ष्ण) तिक्खअर
तिक्खअम पित्र (प्रिय)
पिअअर
पिअअम धूल (स्थूल)
थलअर
थूलअम मिउ (मृदु)
मिउअर
मिउअम खुद्द (क्षुद्र)
खुद्द अर
खुद्दअम विउस (विद्वस्) विउसअर
विउसमम दीहर (दीर्घ)
दीहरअर
दीहरअम विशेषण शब्द ईयसुन् (अस) इष्ठन् (इट्ठ गुरु>गर
गरीअस
गरि? बहु >भू
भूयस अप्प >कण (अल्प) कणीअस बुड्ढ>जा (वृद्ध) जायस पावी (पापी)
पावीयस
पाविट्ठ ३. मत्वर्षीय [ आलु, इल्ल, उल्ल, आल, वंत, मंत, इत्त, इर और मण ] किसी वस्तु का स्वामी होना (जिसे हिन्दी में 'वान्' अथवा 'वाला' के बारा प्रकट किया जाता है) अर्थ में आलु, इल्ल, उल्ल; आल, वंत, मंत आदि
१. अतिशायिकात्त्वातिशायिकाः संस्कृतवदेव सिद्धः । हे० ८.२.१७२ (वृत्ति)।
भूइट्ठ
कट्ठि जेट्ट
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