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________________ षष्ठ अध्याय : तद्धित प्रत्यय किसी विशेष अर्थ को प्रकट करने के लिए संज्ञादि शब्दों में जिन प्रत्यर्यो को जोड़ा जाता है उन्हें तद्धित (तत्+हित तेभ्यः प्रयोगेभ्य: हिता इति तद्धिताः - जो विभिन्न प्रयोगों के काम आवें) प्रत्यय कहते हैं। इन प्रत्ययों के जुड़ने पर जो शब्द बनते हैं, उन्हें तद्धितान्त कहते हैं । प्रमुख तद्धित प्रत्यय निम्न हैं -- १. अपत्यार्थक [ अ, ई, आयण, एय आदि ] अपत्य (सन्तान = पुत्र या पुत्री) अर्थ में अ, ई, आयण, एय आदि ( ईण आदि) प्रत्यय संस्कृतवत् होते हैं। किसी वंश या गोत्र में उत्पन्न पौत्र आदि के लिए भी अपत्यार्थक प्रत्ययों का प्रयोग होता है । संस्कृत में अपत्यादि के अर्थ में अण् (अ), इञ् (इ) आदि (यत् - य, ढक्-एय, ण्य - य, घ=इय, ठक् - इक; अन् = अ, यञ्य , फक् = आयन् आदि ) प्रत्यय होते हैं । उदाहरण-वसुदेव+अ = वासुदेवो (वसुदेवस्स अपत्तं)-वासुदेवः । दसरह+ ई-दासरही (दसरहस्स अपत्तं)-दाशरथिः । सिव ( शिव )+अ=सेवो (सिवस्स अपत्तं) शैवः । नड+आयण नाडायणो ( नडस्य अपत्तं ) = नालायनः । नर+ आयणो - नारायणो (नरस्य अपत्तं)=नारायणः । कुलडा+एय-कोलडेया (कुलडाए अपत्तं) कोलडेयः । २. अतिशयार्थक-तुलनार्थक [ अर, अम, ईअस और इ8 ] जब दो की तुलना में किसी एक का उत्कर्ष या अपकर्ष बतलाया जाता है (Comparative degree) तो विशेषण वाचक शब्द में अर और ईअस प्रत्यय होते हैं तथा जब दो से अधिक की तुलना में किसी एक का उत्कर्ष या अपकर्ष बतलाया जाता है (Superlative degree) तो अम और इट्ठ प्रत्यय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001669
Book TitlePrakrit Dipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2005
Total Pages298
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size13 MB
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