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________________ तद्धित प्रत्यय ] भाग १ : व्याकरण [ ४५ प्रत्यय होते हैं ।' संस्कृत में इस अर्थ में 'मतुप्' (मत् या वत्) आदि (इवि ठन्, इतच् आदि) प्रत्यय होते हैं । मत्वर्थीय शब्दों का अर्थ दो प्रकार से किया जाता है - ( १ ) तद् अस्य अस्ति ( इसके पास है ) और ( २ ) तद् अस्मिन् अस्ति ( इसमें है ) । जैसे— आलू - ईसा + आलु-ईसालु > ईसालू (ईर्ष्यावान् ), दया + आलु- दयालू (दयावान्), लज्जा+आलु=लज्जालु ( लज्जावान् ), नेह+ आलू -नेहालू ( स्नेहवान् ). कालू, सद्धालू, णिद्दालू । इल्ल --- सोहा + इल्ल सोहिल्ल> सोहिल्लो (शोभावान्), घाम + इल्ल छाया + इल्ल छाइल्लो, घामिल्लो (धर्मवान्), (छायावान् ), गब्बिल्लो (गर्ववान्)/ गुणिल्लो ( गुणवान् ) कंटइल्लो ( कंटकित: ) । उल्ल—दप्प+उल्ल= दप्पुल्ल > दप्पुल्लो (दर्पवान्), वियार + उल्ल= वियारुल्लो ( विचारवान् ), मंस + उल्ल= मंसुल्ला ( श्मश्रुवान् ) । आल - रस + आल= रसाल > रसालो ( रसवान्), जोण्हा+आल - जोण्हालो ( ज्योत्स्नावान्), सद्द + आल - सद्दालो ( शब्दवान्), जडा+आल= जडालो (बटावान्); धण + आल= धणालो ( धनवान् ) । वंत - भत्ति +वंत-भत्तिवंत >भत्तिवंतो ( भक्तिमान् ), धणवंतो ( धनवान्) । मंत - सिरि+मंत - सिरिमंत > सिरिमंती (श्रीमान्), पुण्णमंतो ( पुण्यवान्) । इत्त-कव्व+इत्त= कव्वइत्त > कव्वइत्तो ( काव्यवान्), माणइत्तो (मानवान्) । इर—-गव्व+इर=गव्विर > गव्विरो (गर्ववान्), रेहिरो (रेखावान्) । मण—धण+मण-क्षणमण >धणमणो ( धनवान् ), बीहामणो (भीमान्) । ४. इदमार्थक [ केर, एच्चय ] इदमर्थ ('यह इसका ' ) इस सम्बन्ध को अभिव्यक्त करने के लिए 'केर' प्रत्यय १. मल्विल्लोल्लाल - वन्त मन्तेत्तेर-मणा मतोः । हे० ८. २. १५९. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001669
Book TitlePrakrit Dipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2005
Total Pages298
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size13 MB
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