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________________ पञ्चम अध्याय : कृत् प्रत्यय धातुओं से संज्ञा विशेषण अव्यय आदि शब्द बनाने के लिए जिन प्रत्ययों को जोड़ा जाता है, उन्हें कृत् प्रत्यय कहते हैं । इनके जुड़ने पर जो संज्ञादि शब्द बनते हैं उन्हें वृदन्त' (कृत् + अन्त) कहते हैं । प्रमुख कृत्-प्रत्यय निम्न हैं :१. वर्तमानकालिक कृदन्त [ न्त, माण और ई ] वर्तमान काल में किसी कार्य के लगातार होते रहने के अर्थ में न्त ( शतृ ), माण ( शानच् ) और ई प्रत्यय होते हैं ।' 'ई' प्रत्यय केवल स्त्रीलिङ्ग में जोड़ा जाता है जो कभी न्ती और माणी के रूप में और कभी केवल 'ई' के रूप में प्रयुक्त होता है । इन प्रत्ययों के जुड़ने पर पूर्ववर्ती 'अ' का विकल्प से 'ए' होता है । इस तरह ईकारान्त और आकारान्त दोनों रूप स्त्रीलिङ्ग में होने से स्त्रीलिङ्ग में १० ( ४+४+२ ) रूप बनते हैं । संस्कृत में इस अर्थ में परस्मैपदी धातुओं में 'शतृ ' ( अत् ) और आत्मनेपदी धातुओं में एवं कर्मणि प्रयोग में ' शानच् ' ( आन या मान ) प्रत्यय होते हैं । परन्तु प्राकृत में ऐसा भेद नहीं है । जैसे— धातु इस > हंस हंसना a भू > हो-होना 1 Jain Education International पुं० नपुं ० हसन्तो हसमाणो हसन्तं हसमाणं हसेन्तो हसेमाणो हसेन्तं हसेमाणं स्त्री० हसन्ती हसेन्ती हसंता हसेंता हसमाणी हसेमाणी हसमाणा हसेमाणा सई हसेई होअंती होअमाणी होतो होअमाणो होअंतं होअमाणं होतो होएमाणो होएतं होएमाणं होअइ होएई होंतो होमाणो १. न्तमाणौ शतृशानचोः । ई च स्त्रियाम् । वर० ७.१०-११. शत्रानशः । ई च स्त्रियाम् । हे० ८.३.१८१-१८२. For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001669
Book TitlePrakrit Dipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2005
Total Pages298
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size13 MB
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