SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 58
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ व्यञ्जन सन्धि ] भाग १ : व्याकरण [३३ (६) भूतकृदन्त क्त्वा प्रत्यय के स्थान पर होने वाले तूण, तुआण, ऊण और उआण के णकार पर, तृतीया एकवचन तथा षष्ठी बहुवचन के 'ण' प्रत्यय पर तथा सातभी बहुवचन के 'सु' प्रत्यय पर अनुस्वार का आगम विकल्प से होता है । जैसे- काऊण काऊणं (कृत्वा), काउमाण काउआणं (कृत्वा); कालेण कालेणं (कालेन), तेण तेणं (तेन), वच्छेसु वच्छेसु (वृक्षोसु), वच्छाण वच्छाणं (वृक्षाणाम्), वच्छेण वच्छेणं (वृक्षण)। (७) प्रयोगानुसार कुछ शब्दों (वक्रादिगण) के प्रथम, द्वितीय या तृतीय वर्ण पर अनुस्वार का आगम होता है-(क) प्रथम वर्ण पर, जैसे---वंकं (वक्रम्), मंसू (श्मश्रु), फंसो (स्पर्शः), पुंछ (पुच्छम्), अंसु (अश्रु), तंसं (त्र्यसं); मंजारो (मार्जारः), दंसणं (दर्शनम्)। द्वितीय वर्ण पर, जैसे-इह (इह); मणंसी (मनस्वी), मणसिणी (मनस्विनी)। तृतीय वर्ण पर, जैसे-उरि (उपरि), अणिउतयं अइमुतयं (अतिमुक्तकम्), अरि (उपरि)। (८) अनुस्वार का लोप भी बहुलता से प्राकृत में पाया जाता है । जैसे-(क) विशति आदि के अनुस्वार का लोप होता है --विंशति-वीसा, त्रिंशत-तीसा; संस्कृतम्-सक्कयं, संस्कारः-सक्कारो, संस्तुतम्-सत्तु । (ख) मांसादिगण के अनुस्वार का लोप विकल्प से होता है - प्रथम स्वर में-मंसं मासं (मांसम्). पंसू पासू (पांसुः-पांशुः), सिंघो सीहो (सिंहः), मंसलं मासलं (मांसलम्)। द्वितीय स्वर में--हं कह (कथम्), नूणं नण (ननम्), एवं एव (एवम्)। तृतीय स्वर में--इआणि इआणि (इदानीम्), संमुहं संमुह (सम्मुखम्) । १. क्त्वा-स्यादेर्ण-स्वोर्वा । हे० ८. १. २७. २. बकादावन्तः । हे० ८. १. २६. ३. विंशत्यालुक् । हे० ८. १. २८. ४. बांसादेर्वा । हे० ८. १. २९. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001669
Book TitlePrakrit Dipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2005
Total Pages298
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy