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प्राकृत-दीपिका
[ चतुर्थ अध्याय
- (२) पदान्त 'म्' के बाद स्वर आने पर 'म' का अनुस्वार विकल्प से होता है।' जैसे-यम आहुयमाहु यं आहु, नगरम् + आगच्छइ-नगरमागच्छइ नगर आगच्छद।
(३) छ, अ ण तथा न के बाद कोई भी व्य ञ्जन वर्ण हो तो उसे अनुस्वार हो जाता है ! यदि 'क'वर्गादि में से किसी भी वर्ग का कोई भी वर्ण हो तो अनुस्वार को विकल्प स तद्वर्गीय पञ्चम वर्ण (अनुनासिक वर्ण) भी हो जाता है। जैसे-संखो सङ्खो (शङ्खः), पंको पङ्को (पङ्कः), चंदो चन्दो (चन्द्रः), पंथो पन्थो (पन्या), उक्कंठा उक्कण्ठा (उत्कण्ठा), संझा सञ्झा (सन्ध्या), अंगणं अङ्गणं (अङ्ग नम्), बंधवो बन्धवो (बान्धवः), आरंभो आरम्भो (आरम्भः); कंपइ कम्पइ (कम्पते), कंचुओ कञ्चुओ (कञ्चुकः), छंमुहो छम्मुहो (षण्मुखः) ।
(४) कुछ शब्दों के अन्तिम व्यञ्जन का मकार होकर अनुस्वार हो जाता है। जैसे--सम्यक् > सम्मम् > सम्मं । साक्षात् > सक्खं, यत् > जं, पृथक् > पिह, पुहं । [ अपवाद
कहीं-कहीं अन्तिम व्यञ्जन का लोप न होकर वह परवर्ती स्वर के साथ मिल जाता है। जैसे--किम्+इहं - किमिहं, पुनर्+अपि - पुणरवि, दु अतिक्रमः>अइक्कमो दुरइक्कमो (दुरतिक्रमः), यद् अस्ति जदत्थि । ]
(५) कुछ शब्दों (विशेषकर द्विरुक्त पदों) में दो पदों के मध्य में 'म्' का आगम विकल्प से हो जाता है, यदि बाद में कोई स्वर हो । जैसे एक्क+एक्कंएक्कमेक्कं एक्केक्कं ( एकैकम् ), अंग-अंगम्मि-अंगमंगम्मि अंगअंगम्मि ( अङ्गे अङ्गे), चित्त+आणंदिय-चित्तमाणंदिय ( चित्तमानन्दितः ), इह आगओ-इहमागओ ( इहागतः )। १. बा स्वरे मश्च । हे० ८. १. २४. २. ङ ज ण मो व्य ञ्जने । हे० ६.१. २५. बर्गेन्त्यो बा । हे. ८. १.३.. ३. बहुलाधिकारादन्यस्यापि व्यञ्जनस्य मकारः । हे. ८. १. २४ वृत्ति । ४. वीप्स्यात्स्यादेवीप्स्ये स्वरे मो वा । हे० ८. ३. १.
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