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बव्यय-सन्धि ]
भाग १: व्याकरण
[३१
है तो उसे "पि' या 'मवि' विकल्प से होते हैं और जब स्वर के बाद आता है तो उसे 'वि' या 'अवि' विकल्प से होते हैं। जैसे-कि+अपि-किपि किमवि (किमपि ), तं+अपि-तंपि तमवि (तमपि ), कह अपि-कहंपि कहमवि (कथमपि ), केण+ अपि-केणवि केणावि ( केनापि ), एगो+अपि एगोवि एगो अवि ( एकोऽपि )।
(३) पद के बाद आने वाले 'इति' अव्यय के 'इ' का लोप होता है। ऐसी स्थिति में 'इति' जब अनुस्वार के बाद आता है तो उसे 'ति' होता है और जब स्वर के बाद आता है तो 'त्ति' (पूर्व स्वर को विकल्प से ह्रस्व भी) होता है।' जैसे-कि+इति-किंति (किमिति ), मुत्तं+इति जुत्तंति (युक्तमिति,) तहा+इतितहात्ति तहत्ति (तथेति), पुरिसो+इति-पुरिसोत्ति पुरिसुत्ति (पुरुष इति), पियो+ इति-पिओत्ति पिउत्ति ( प्रिय इति ), झ+इति झत्ति (झगिति)। यदि 'इति' अव्यय पद के आदि में हो तो 'इति' का 'इअ' होगा 'ति' या 'त्ति' नहीं होगा। जैसे-इअ विज्झ गुहा-निलयाए ( इति विन्ध्यगुहा-निलयायाः)।
(४) इव' जब अनुस्वार के बाद आता है तो उसे 'व' और जब स्वर के बाद आता है तो 'व्व' होता है । जैसे--चंदो+इव-चंदो व्व ( चन्द्र इव), गेहं+इव-गेहं व ( गृहमिव )।
(ग) व्यञ्जन सन्धि प्राकृत में व्यञ्जनान्त पदों का अभाव होने से यद्यपि व्यञ्जन सन्धि का प्रश्न उपस्थित नहीं होता है, परन्तु पदान्त 'म्' में तथा अनुनासिक वर्गों के साथ व्यञ्जन वर्गों में विकार पाया जाता है। जैसे
(१) पदान्त 'म्' को अनुस्वार होता है। जैसे--गिरिम् - गिरि, फलम्फलं, वृक्षम् -वच्छं। १. इतेः स्वरात् तश्च द्विः । हे० ८. १. ४२. २. पि० प्रा० पारा नं० ९२, १३५. ३. अन्त्यव्यञ्जनस्य । हे० ८. १. ११. ४. मोऽनुस्वारः । हे० ८. १. २३..
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