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तृतीय अध्याय : लिङ्गानुशासन
संस्कृत के समान प्राकृत में भी तीन लिङ्ग माने गये हैं । सामान्यतया लिङ्गव्यवस्था संस्कृत के ही समान है परन्तु बहुत स्थलों में प्राकृत में संज्ञाओं का लिङ्ग बदल गया है । कुछ विशेषताएं निम्नलिखित हैं
(१) ( दामन्, शिरस् और नभस् शब्दों को छोड़कर शेष ) नकारान्त और सकारान्त शब्द पुल्लिङ्ग में होते हैं । जैसे--
(क) सकारान्त (संस्कृत में जो नपुं० हैं )-जसो ( यशस् - यशः ), मणो ( मनस् = मनः ), तमो ( तमस् - तमः ), तेओ ( तेजस् - तेजः ), पओ ( पयस् - पयः ), सरो ( सरस् - सरः ), उरो ( उरस् - उरः)।
(ख) नकारान्त ( संस्कृत में जो नपुं० हैं )- कम्मो ( कर्मन्-कर्म ); धम्मो (धर्मन् - धर्म ), वम्मो ( वर्मन् वर्म ), जन्मो ( जन्मन् जन्म ), नम्मो ( नर्मन् = नर्म ), धामो (धामन्-धाम), मम्मो ( मर्मन् - मर्म )।
[ अपवाद
(संस्कृत के समान नपु० ही हैं )--वयं ( वयस् - वयः ); सेयं ( श्रेयस् - श्रेयः ), सुमण ( सुमनस् - सुमनः), सिरं ( शिरस्-शिरः ), नहं ( नभस् नभः ), दामं ( दामन् = दाम ), सम्मं (शर्मन् = शर्म ), चम्म ( चर्मन्=चर्म )। ]
(२) प्रावष्, शरद् और तरणि ( ये सभी शब्द संस्कृत में स्त्रीलिङ्ग हैं। 'तरणि' शब्द संस्कृत में पुं० भी है ) ये पु० हैं'-पाउसो, सरमओ और एस तरणी। १. स्नमदाम-शिरो-नभः । है ० ८. १. ३२. २. प्रावृद-शरत्तरणयः पुस । हे० ८. १. ३१.
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