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________________ असंयुक्त व्यञ्जन-परिवर्तन ] भाग १ : व्याकरण होता है। जैसे--नाथः = नाहो, णाहो। नटः = नडो, णडो। नाम = णाम, नाम । नगरम् - "अरं, नयरं । नरःणरो, नरो। २. तवर्गीय (स्ववर्गीय) वर्गों के साथ संयुक्त रहने पर विकल्प से 'न्' का प्रयोग होता है । टवर्गीय वर्गों के साथ संयुक्त रहने पर विकल्प से 'ण' का प्रयोग होता है। विकल्पभाव में अनुस्वार होता है। ग्रन्थिम् = गण्ठि, गठिं । स्फुरन्ति - फुरन्ति, फुरंति । सन्तिष्ठते = संठाइ, सण्ठाइ। ३. 'हाविओ' (स्नापितः) और 'लिंबो' (निम्बः) में क्रमशः 'न्' को 'ह' और 'ल' हुआ है।] (१२) पदान्त वर्ण-- प्राकृत में पदान्त व्यञ्जन वर्ण नहीं होते। पदान्त 'म्' को सर्वत्र अनुस्वार हो जाता है। जैसे--उत्पलम् = उप्पलं । नयनम==णयणं । [अन्य पदान्त व्यञ्जन वर्णों का या तो लोप हो जाता है या उसे स्वरयुक्त कर दिया जाता है । कहीं-कहीं उसे मकार में परिवर्तित करके अनुस्वार भी कर दिया जाता है। जैसे-(क) लोप--देवात् - देवा । पश्चात्-पच्छा । तावत् ताव । मनस् - मण । जगत्-जग। पुनर् - पुणो। (ख) स्वरागम--शरद् - सरओ । दिश् - दिशा । वणिज्म्वणिअ । सरित्सरिआ। (ग) अनुस्वार--- साक्षात् - सक्खं । भगवान् = भगवं । यत्-जं । ] (१३) आदिवर्ण 'य>ज'–४ आदि 'य' को 'ज' होता है। जैसे-यशः = जसो। यमःजमो। यज्ञ: - जग्गो। युग्मम्-जुग्गं । याति-जाइ । यथा-जहा । योग: जोगो। [विशेष विचार कहीं-कहीं 'य' के निम्न परिवर्तन भी होते हैं। जैसेय>लोप-दो स्वरों के मध्यवर्ती होने पर । देखिए नियम १४, अन्यत्र श्यामा - सामा। १. नो णः । वादी ! हे० ८. १. १२८, २२९. २. अन्त्यव्यञ्जनस्य । स्त्रियामादविद्युतः । शरदादेरत् । हे० ८.१.११,१५,१८. ३. बहुलाधिकाराद् अन्यस्यापि व्यञ्जनस्य मकारः । हे० वृत्ति ८.१. २४. ४. आदेर्यो जः । हे० ८. १. २४५. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001669
Book TitlePrakrit Dipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2005
Total Pages298
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size13 MB
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