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________________ साहसिओ बालो] भाग ३ : सङ्कलन [ २०९ चितेसु जहा अहं तुम्हाणं सत्तू । जं सच्चं भासि ण उण संपयं । बत्तो चेय तुमं अम्हाण गेहे समागओ, तओ चेव तुह दंसणे मित्तं सो राया संवुत्तो । तुमं च मम पुत्तो ति। ता एवं जाणिऊण मा कुणसु आद्धिई, मुंचसु पडिवक्ख बुद्धि, अभिरमसु एत्थ अप्पणो गेहे । अवि य जहा सव्वं सुदरं होहिइ तहा करेमि' त्ति भणिऊण परिहिओ से सयमेव राइणा रयण-कंठओ, दिण्णं च करे करेणं तंबोलं । 'पसाओ' त्ति भणिऊण गहियं, समप्पिओ य देवगुरुणो। भणिओ य मंतिणो 'एस तए एवं उवयरियव्यो जहा ण कुलहरं संभरइ ति। सव्वहा सहा कायन्वो जहा मम अउत्तस्स एस पुत्तो हवइ' त्ति। तओ कंचि कालं यथाऽहं युष्माकं शत्रुः । यत् सत्यमासीत्, न पुनः साम्प्रतम् । यदैव त्वमस्माकं गृहे समागतः तदैव तवदर्शनेन मित्रं सो राजा संवृत्तः । त्वं च मम पुत्र इति । तस्माद् एवं ज्ञात्वा मा कुरु अधृति ( विषादम् ), मुञ्च प्रतिपक्षबुद्धि, अभिरमस्व अत्र आत्मनो गृहे । अपि च यथा सर्व सुन्दरं भविष्यति तथा करिष्यामि इति भणित्वा परिधापितः स्वयमेव राज्ञा रत्नकण्ठकः, दत्तं च करे कराम्यां ताम्बूलम् । 'प्रसीद' इति भणित्वा गृहीतम्, समर्पितश्च देवगुरुन् । भणितवांश्च मन्त्रिणः 'एष त्वया एवमुपचरितव्यो यथा न कुलगृहं संस्मरेत्' इति । सर्वथा तथा मत सोचो कि मैं तुम्हारा शत्रु हूँ। जो पहले सत्य था वह अब नहीं है । जब से तुम मेरे घर में आये हो उसी समय से तुम्हारे दर्शन होने के बाद से वह राजा मेरा मित्र हो गया है और तुम मेरे पुत्र हो। अतः ऐसा जानकर विषाद मत करो, शत्रुभाव ( प्रतिपक्षबुद्धि ) को छोड़ दो। अपने घर के समान यहाँ आनंद से रहो' और भी-'जैसे सब मंगलमय होगा वैसा करूंगा।' इस प्रकार कहकर राजा ने स्वयं ही उसके गले में रत्नों का हार पहनाया और अपने हाथों से उसे ताम्बूल ( पान ) दिया। 'प्रसन्न होघे ऐसा कहकर स्वीकार किया । देवगुरु को समर्पित किया। मन्त्रियों से कहा-'इसके साथ ऐसा व्यवहार करें जिससे यह अपने कुलगृह का स्मरण न करे। सर्वथा वैसा ही करें जिससे पुत्रहीन मेरा यह पुत्र हो जाए।' इसके बाद कुछ देर रुककर राजा १४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001669
Book TitlePrakrit Dipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2005
Total Pages298
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size13 MB
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