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________________ हणुओ जम्मकहा] भाग ३ : सङ्कलन [ १९९ २४. एयं ताण पलावं, सुणिऊण नहङ्गणाउ ओइण्णो। सयलपरिवारसहिओ, ताव य विज्जाहरो सहसा ॥ ९५ ॥ २५. पेच्छइ गुहापविट्ठो, जुवईओ दोण्णि रूवकलियाओ। पुच्छइ किवालयमणो, कत्तो सि इहागया तुब्भे ? ॥ ९६ ।। २६. भणइ य वसन्तमाला, सुपुरिस ! एसा महिन्दनिवधूया। नामेण अञ्जणा वि हु, महिला पवर्णजयभडस्स ॥ ९७ ।। २७. सो अन्नया कयाई, काऊण इमाएँ गब्भसंभूई। चलिओ सामिपयासं, न य केणइ तत्थ परिणाओ।। ९८ ॥ २४. एवं तयोः प्रलापं श्रुत्वा नभाङ्गणादवतीर्णः । सकलपरिवारसहितः तावच्च विद्याधरः सहसा ॥ २५. प्रेक्षति गुफाप्रविष्टो युवत्यो द्वयौ रूपकलितो । पृच्छते कृपालुमनः कुत इह आगता युवाभ्याम् ।। २६. भणति वसन्तमाला सुपुरुष ! एषा महेन्द्रनृपधूता । नाम्ना अञ्जना खलु महिला पवनञ्जयभटस्य ।। २७. स अन्यदा कदाचिद कृत्वा अस्यां गर्भसम्भूतिः । चलितः स्वामिसकाशं न च केनापि तत्र परिज्ञातः ॥ - २४. उनकी ऐसी बातचीत को सुनकर सम्पूर्ण परिवार के साथ एक विद्याघर सहसा वहाँ आकाश से नीचे उतरा। २५. गुफा में प्रवेश करके उसने दो रूपवती युवतियों को देखा। दयालु मनवाले उसने पूछा कि तुम यहाँ पर कहाँ से आई हो ? । २६ वसन्तमाला ने कहा कि हे सुपुरुष ! यह महेन्द्र की अंजना नाम की पुत्री तथा सुभटः पवनंजय की पत्नी है। २७. वह पवनंजय कभी एक समय इसमें गर्भ की उत्पत्ति करके स्वामी रावण के पास चला गया। किसी ने भी वहां यह बात न जानी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001669
Book TitlePrakrit Dipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2005
Total Pages298
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size13 MB
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