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________________ १७२ ] प्राकृत-दीपिका [ विंश पाठ E ३. वह अकेली क्या करेगी =सा एकल्ला किं करिस्सइ ? ४. धन का इतना अधिक संचय उचित नहीं है- धणस्स एत्तिअं अहियं संचयं वरं णत्थि । ५. जितना तुम्हें चाहिए उतना मिलेगा = जित्तिअं तुए आवस्सयकया तित्तियं मिलिस्सह । ६. वह विचारवान् है परन्तु ईर्ष्यालु है सो वियारुल्लो किंतु ईसालू अत्थि । ७. एक समय इस गाँव में घमण्डी, जटाधारी रहता था एक्कसिअं अस्सिं गामे गव्विरो जडालो णिवसीअ । ८. दाढ़ीवाला राजा का नया आदमी है - मंसुल्लो रायकेरं नवल्लो णरो अत्थि । ९. यह घड़ी अपनी है और यह पुस्तक दूसरे की है-इमा घडिमा अवणयं इदं पोत्थयं परक्कं य । १०. उनकी स्थूलता बढ़ रही है- तेणं पीणिमा वड्ढइ । 'नियम ४८ - तद्धित प्रत्ययान्त शब्दों का प्रयोग सामान्य नियमों के ही अनुसार होता है । तद्धित प्रत्ययान्त शब्द बनाने के लिए देखें 'तद्धित प्रकरण' । अभ्यास- (क) प्राकृत में अनुवाद कीजिए - ईर्ष्यालु कभी उन्नति नहीं कर सकता है । जहाँ से वह आया था वहीं गया । तुम्हें कितना धन चाहिए है ? विद्यावान् सदा स्नेहस्वभावी होता है। तीन वार वह रोया । वसुदेव का पुत्र धनवाला है । उसमें मृदुता कैसे आई ? तुम्हारा घर कहाँ है ? वहाँ से मैं दूसरे दिन अपरज्जु ) गया । (ख) हिन्दी में अनुवाद कीजिए - केत्तिअं रूवगाणं संचयं अत्थि ? दासरही तिहुत्तं गुरुं पणमइ । नेहालू जणो भत्तिवंतो होइ । किं सो सव्वहा एरिसं ण करेइ ? मणुअत्तणस्स सिरीमंतस्स कत्थ ण पइट्ठा होइ ? जत्य धणं मत्थि तत्थ सोहा होइ । संसारभीओ जणो पीणत्तणं ण लहइ । सेवो इदो देवमंदिरं गओ - 1 भिक्खु पइघरं एयहुतं गच्छइ । नयरुल्लो केरिसं कज्जं कुणइ ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001669
Book TitlePrakrit Dipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2005
Total Pages298
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size13 MB
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