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प्राकृत-दीपिका [ चतुर्दा अध्याय उं, इत्ताण आदि ) भी मिलते हैं। जैसे-कृत्वा > करित्ता करित्ताणं करेत्ता किच्चा करेत्ताणं कटु, भूत्वा >होत्ता होच्चा, गृहीत्वा >घेतूण गहाय; आदाय >आदाए, श्रुत्वा >सोऊण सोउ, लब्ध्वा >लहियाण लहियाणं लहिताणं, ज्ञात्वा >नच्चाण नच्चाणं, परिज्ञाय >परिन्नाए ।
(१४) हेत्वर्थक तुमुन् के स्थान पर तए, इत्तए, एत्तए, त्तु और टु प्रत्यय होते हैं। जैसे-कर्तुम् >करित्तए करेत्तए कटु, द्रष्टुम् >पासित्तए, श्रोतुम् > सुणित्तु, गन्तुम् >गमित्तए ।
(१५) भूतकाल के लिये भी अनेक प्राचीन प्रत्ययों का प्रयोग मिलता है। पुरुष तथा वचन-सम्बन्धी भेद प्रायः मिट गया है। जैसे-अकार्षीः >कासि कासी अकासि अकासी काही, अवादी: >वधासी वयासि, अकार्षम् >अरिस्सं, आसीत् >होसी।
(१६) आदेश होते हैं---गृहम् >घरं गहं हरं गिह, धनुः >धणुहं धणुक्खं धणु, यथा >अहा जहा, यावत् >आव जाव ।
(७) पैशाची ( भूत-भाषा) पैशाची एक बहुत प्राचीन प्राकृत भाषा है। वाग्भट्ट ने इसे भूत-भाषा कहा है । पिशाच एक जाति थी और उनकी भाषा को पैशाची कहा गया है। जार्ज ग्रियर्सन का मत है कि शक और यवनों के मेल की जाति ही पिशाच जाति थी जो उत्तर-पश्चिम पंजाब अथवा अफगानिस्तान में रहती थी। वहीं से उनके विस्तार के साथ इस भाषा का भारत के विभिन्न प्रदेशों (पाण्ड्य, काञ्ची, कैकय आदि ) में विस्तार हुआ। पैशाची के अधिकांश लक्षण पश्चिमोत्तर प्रदेश की भाषाओं से मिलते हैं। इसके विपरीत डा० हार्नली का मत है कि पैशाची द्रविड-भाषा-परिवार से उत्पन्न हुई है जो द्रविड भाषा से प्रभावित आर्यभाषा का विकृत रूप रहा है । अतः वे उसका उत्स विन्ध्य के दक्षिण में स्वीकार करते हैं। ___ गुणाढ्य की बृहत्कथा इसी भाषा में लिखी गई थी जिसका संस्कृत रूप क्षेमेन्द्र की बृहत्कथामजरी में तथा सोमदेव के कथासरित्सागर में सुरक्षित है।
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