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________________ विविध प्राकृत भाषायें ] विभक्ति-चिह्न एकवचन ए, ओ अनुस्वार इग, सा आए, आते आओ, आतो स्स अंसि, मि, सि एकवचन इ सि मि बहुवचन आ भाग १ : व्याकरण ए इहि, इहि तृ अणं Jain Education International Я о द्वि० च० इहितो पं० अगं ष० बहुवचन न्ति ह मो 'वीर' शब्द के रूप स० सं० एकवचन वीरे वीरं वीरेण वीराए, वीराते वीराओ, वीरातो वीरस्स वीरंसि वीरम्मि वीरे, वीरा इसु ए, आ ए ( ९ ) वर्तमान काल के धातु-प्रत्यय तथा 'गच्छ' धातु के रूप- धातु-प्रत्यय 'गच्छ' धातु के रूप एकवचन प्र० पु० गच्छइ, म० पु० गच्छसि उ० पु० गच्छामि (१०) यथा और यावत् शब्दों के 'य'का 'अ' होता है । जैसे-प्रथाजात अहाजात, यथाख्यात > अहवखाय, यथासुखम् > अहासुं यावत्कया > आवकहा । [ १२९ बहुवचन वीरा वीरे वीरेहि वीराणं वीरेहितो वीराणं वीरेसु वीरे For Private & Personal Use Only बहुवचन गच्छन्ति (११) संयुक्त दन्त्य व्यञ्जन प्रायः मूर्धन्य हो जाते हैं । जैसे -- आर्त > अट्ट, निर्ग्रन्थः > नियंठो, पतनम् > पट्टणं, नर्तकः = नट्टगे, श्रद्धा > सड्ढा । गच्छह गच्छामो (१२) 'एव' के पूर्ववर्ती 'अम्' को 'आम्' होता है । जैसे-- एवमेव > एवामेव, तमेव > तामेव, पूर्वमेव > पुव्वामेव क्षिप्रमेव > खिप्पामेव । तेन + एव > तेणं एव - सेणामेव । (१३) सम्बन्ध भूत - कृदन्त क्त्वा के स्थान पर कई प्राचीन प्रत्यय ( इत्ता एता, त्ता, च्वा च्चाण, च्चाणं, इतु, ट्टु, इय, इया, ए, याण, याणं, ऊण 1 www.jainelibrary.org
SR No.001669
Book TitlePrakrit Dipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2005
Total Pages298
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size13 MB
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