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________________ ( 13 ) युक्तिसंगत नहीं है । (vi) प्राकृत से जब 'जनभाषा' अर्थ लिया जायेगा तो वह समस्त भाषाओं की जननी अवश्य होगी परन्तु जब प्राकृत से साहित्यिक प्राकृत अर्थ लिया जायेगा (जो कि प्राकृत से अभीष्ट है ) तो कहा जा सकता है कि प्राकृत का मूलस्रोत छान्दस् भाषा रही है जिस पर संस्कृत का पर्याप्त प्रभाव रहा है । प्राकृत भाषा के अध्ययन से संस्कृत के विकृत रूपों एवं उनके सरलीकरण की प्रवृत्ति का इतिहास दृष्टिगोचर होता है । संस्कृत में प्राकृत से भी कई शब्दों को लिया गया है । (vii) आर्यों की भाषा पर जब अनार्यों की भाषा का प्रभाव पड़ने लगा तो पुरोहितों ने छान्दस् भाषा को अनुशासित किया होगा। परन्तु जन भाषा का प्रभाव उस पर अवश्य पड़ा, फलस्वरूप ऋग्वेद की अपेक्षा अथर्ववेद और ब्राह्मण साहित्य की भाषा में जनतत्त्व अधिक दृष्टिगोचर होते हैं । पाणिनि आदि ने उनका परिमार्जन करके संस्कृत का स्वरूप प्रकट किया होगा। परन्तु छान्दस् में जो जनतत्त्व समाविष्ट थे, वे पूर्णरूप से परिमार्जित नहीं हो सके होंगे । कालान्तर में साहित्यिक प्राकृत भाषा का विकास हुआ होगा। इसमें भगवान महावीर और गौतम बुद्ध का बड़ा योगदान रहा, जिन्होंने अपने उपदेश संस्कृत में न देकर जनभाषा ( प्राकृत ) में दिए । इस तरह कालान्तर में उस जनभाषा ने जो वैदिक भाषा के समानान्तर चल रही थी, प्राकृत भाषा का रूप धारण किया होगा । डॉ० पी० डी० गुणे ने भी इसी तथ्य को स्वीकार करते हुए कहा है'--From the above it will be seen that the linguals in vedic and later Sk. are due to the influence of the old Prakrits, which therefore must have existed side by side with Vedic dialects. (viii) छान्दस्, संस्कृत तथा प्राकृत में मूर्धन्य ध्वनियों का अस्तित्व द्रविडभाषा के प्रभाव से है। यही कारण है कि भारोपीय परिवार की किसी अन्य भाषा में इन ध्वनियों का अस्तित्व नहीं है। अवेस्ता में मूर्धन्य ध्वनियां नहीं है। 1. 'An Introduction to comparative philology', पृ० १६३. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001669
Book TitlePrakrit Dipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2005
Total Pages298
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size13 MB
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