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________________ शब्दरूप] भाग १: व्याकरण [९५ फलाणि, इ, ई द्वि० वारि वारीणि,-ई,ई फलेण, -णं फलेहि, -हिं, -ह तृ० वारिणा वारीहि,-हिं,-हिं फलस्स फलाण,-णं च० वारिणो वारीण,-णं कुडल, दुग्ग (दुर्ग किला), भायण (भाजन बर्तन), कट्ठ (काष्ठ), आउह (आयुध - शस्त्र), बीअ (बीज), चारित्त (चारित्र), कुल (वंश), अमिअ (अमृत), विस (विष), वण (वन), घण (धन-मेघ), णयर (नगर), पुप्फ (पुष्प), कमल, पाव (पाप), घर (गृह), संग्गहण (संग्रह), खेत्त (क्षेत्र), सत्थ (शास्त्र), नयण (नयन), मित्त (मित्र), हियय (हृदय), विचित्त (विचित्र ), सअड (शकट-गाड़ी), सच्च :सत्य), कम्म (कर्म), कव्व (काव्य), सद्द (शब्द), सुह (सुख), दुह (दुःख, रिण (ऋण कर्ज), अण्णाण (अज्ञान), अभिहाण (अभिधान = नाम), रस, लावण्ण (लावण्य), सच्छ (स्वच्छ), सम्माण (सम्मान), सासण (शासन), रज्ज ( राज्य ), आकड्ढण (आकर्षण) पाण (प्राण ), धिज्ज ( धैर्य ), वर ( अच्छा ), अन्न ( अनाज ), लोण ( लवण=नमक ), वसन ( वस्त्र ), भाल ( ललाट ), पगरक्ख ( जूता), आभरण (आभूषण), रूव ( रूप), अंडय (अण्डा), विहाण (प्रभात ), मसाण ( मरघट ), वेसम्म (वैषम्य विषमता), सागय ( स्वागत), साहस, उत्तरीय ( दुपट्टा ), कंचुअ (कंचुक-कुरता ), कंचण ( कंगन ), कवाड ( किवाड ), छत्त (छत्रछाता), सिर, काणण ( कानन-वन ), कप्पास ( कार्पास कपास ), विजण (व्यजन-पंख या विजना), चंदण ( चंदन ), चम्म ( चर्मचमड़ा), पंजर ( पिंजड़ा ), तेल्ल ( तेल ), णेड्ड ( नीड घौंसला ), जाण ( यान-वाहन-गाड़ी), छिद्दय (छिद्र-छेद या बिल ), चिंतण (विचार), आयास ( आकाश ), हिम ( बर्फ ), हेम (स्वर्ण), हिरण्ण ( चाँदी), महाणस (महानस = रसोईघर ), उवहाण ( उपधान - तकिया ), तंबोल ( तांबूल-पान ), मोत्तिय ( मौक्तिक-मोती) आदि । ४. इसी प्रकार अन्य इकारान्त नपु० संज्ञाओं के रूप बनेंगे-दहि (दधि), वारि ( ज ल (सुरभि), अट्ठि (अस्थि-हड्डी), अक्खि (अक्षि) आदि । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001669
Book TitlePrakrit Dipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2005
Total Pages298
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size13 MB
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