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________________ प्राकृत-दीपिका [एकादश अध्याय फलत्तो फलाहितो, सुतो पं० वारित्तो वारीहितो,-सुतो फलाण,-णं ष० वारिण वारीण,-णं फले, फलम्मि फलेसु-सु स० वारिम्मि वारीसु,सु फलाणि सं० वारि वारीणि १९४) उकारान्त' 'वत्यु' (वस्तु) एकवचन बहुवचन वत्थु वत्थूणि, वत्थूई द्वि० वत्थु वत्थूणि, वत्थूइ वत्थुणा वत्थूहि, -हिं, -हिं वत्थुणो वत्थूण, -णं पं० वत्थुत्तो वत्थूहितो, -सुतो वत्थुणो वत्थूण, -णं स० वत्थुम्मि वत्थूसु, -सु सं० वत्थूणि सर्वनाम शब्दरूप (१५) सव्व (सर्व-सब) पुं० सम्वा (सर्व) स्त्री० [ बालावत् ] बहुवचन एकवचन बहुवचन सञ्चो सव्वे प्र० सव्वा सव्वाओ, सव्वाउ, सव्वा सव्वं सव्वे, सव्वा द्वि० सव्वं सव्वेण, -णं सव्वेहि, -हि,-हि तृ० सव्वाए सव्वाहि, -हिं,-हिं प. . वत्थु -- १. इसी प्रकार अन्य उकारान्त नपुं. संज्ञाओं के रूप बनेंगे-महु (मधु), जाणु (जानु - घटना), अंसु (अश्रु), जउ (जतु - लाख) आदि । २. इसी प्रकार निम्नोक्त रूप भी चलेंगे-सुव (स्व), अण्ण, अन्न (अन्य), पुव्व पुरिम (पूर्व), वीस (विश्व); अवह, उवह उभय (उभय), अण्णयर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001669
Book TitlePrakrit Dipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2005
Total Pages298
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size13 MB
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