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________________ समास ] [ ८१ वाली कन्या), हंसगमणं इव गमणं जाए साहं सगमणा ( हंसगमना ), मियणय - णा इव यणाई जाए सा - मियणयणा ( मृगनयना ), गजाणण इव आणणो जस्स सो-गजाणणो ( गजाननः गणेशः ) । भाग १ : व्याकरण (२) नञ, बहुव्रीहि -- ( निषेधार्थक ) —न अस्थि ( नत्थि ) भयं जस्स सो-अभयो ( अभय: ), न अस्थि उयरं जीए सा - अणुयरा कण्णा ( अनुदरा कन्या ), न अत्थि पुतो जस्स सो-अपुत्तो ( अपुत्रः ), न अस्थि णाहो जस्स सो अणाहो ( अनाथ: ), नत्थि उज्जमो जस्स सो अणुज्जमो ( अनुद्यमः ) । PER (३) सहपूर्वपद बहुव्रीहि-- 'सह' अव्यय जिसके पूर्वपद में हो । 'सह' का तृतीयान्त पद के साथ समास होता है । आशीर्वाद अर्थ को छोड़कर अन्यत्र सर्वत्र 'सह' के स्थान पर 'स' आदेश होता है । जैसे—पुत्तेण सह - सपुत्तो राया ( सपुत्रः राजा ), फलेण सह = सफलं ( सफलम् ), सीसेण सह -ससीओ आयरिओ ( सशिष्य : आचार्य: ), मूलेण सह समूलं ( समूलम् ), चेलेण सह = सचेलं ष्हाणं ( सचैलं स्नानम् ), कम्मणा सह - सकम्मो णरो ( सकर्मा नरः ), कलत्तेण सह - सकलत्तो णरो ( सकलत्रं नरः ), पुण्णेण सह - सपुण्णो (सपुण्यः) । H (४) प्रादि बहुव्रीहि - प, नि, आदि उपसर्गों के साथ प्रयुक्त बहुव्रीहि समास । जैसे -- निग्गया लज्जा जस्स सो - निल्लज्जो गरो (निर्लज्जो नरः ), निग्गआ दया जस्स सो - निद्दयो जणो ( निर्दयो जनः ), पगिट्ठ पुण्णं जस्सा सो पपुण्णो जणो ( प्रपुण्यो जनः ); विग्गओ धवो जाए सा-विहवा (विधवा), अवगअं रूवं जस्स सो - अवरूवो ( अपरूप: ), अइक्कंतो मग्गो जेण सो बइमग्गो रहो ( अतिमार्गो रथः ) । (६) बंद ( द्वन्द्व ) समास विग्रह वाक्य में जब दो या दो से अधिक संज्ञायें च य अथवा अ शब्द से जुड़ी होती हैं तब उसे दंद (द्वन्द्व - युगल = जोड़ा ) समास कहते हैं । इसमें सभी पदों का अथवा उनके समूह का प्राधान्य होता है । इसके प्रमुख ३ प्रकार हैं(क) इतरेतरजोग दंद - इसमें समस्त सभी पद अपने पृथक् अस्तित्व (प्राधान्य) को कायम रखते हैं, अतः समस्त पद में बहुवचन का प्रयोग होता है । जैसे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001669
Book TitlePrakrit Dipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2005
Total Pages298
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size13 MB
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