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श्रीमद्राजचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् अथ पञ्चमभेदमाह । अब पंचम ( पाँचवें) भेदका निरूपण करते हैं।
उत्पादव्ययसापेक्षोऽशुद्धद्रव्याथिकोऽग्रिमः ।
एकस्मिन्समये द्रव्यमुत्पादव्ययध्रौव्ययुक् ॥१४॥ भावार्थ:-उत्पत्ति और नाशको अपेक्षासहित होने से अशुद्ध द्रव्यार्थिक पंचम (पाँचवां) भेद कहागया है; क्योंकि-एक ही समयमें द्रव्य उत्पत्ति, नाश तथा धौव्य (नित्यता)से संयुक्त है ॥ १४ ॥
व्याख्या । उत्पादव्ययसापेक्षः पञ्चमो भेदोऽशुद्धद्रव्यायिको ज्ञेयः । यत उत्पादव्ययसापेक्षः सत्ताग्राहकोऽशुद्धद्रव्यार्थिकः पञ्चम इति । ५ । यथा एकस्मिन्समये द्रव्यमुनादव्य प्रौव्यरूपं कथ्यते । कथं सद्यः कटकाद्युत्पादसमयः स एव केयूरादिविनाशसमय: । परन्तु कनकसत्ता कटककेयूरयोः परिणामिन्यावर्ज. नीयैव । एवं सति लक्षण्यग्राहकत्वेनेदं प्रमाणवचनमेव स्थान तु नपत्रचनमिति चेत्र । मुख्यगौणभावेनैवानेन नयेन गैलक्षण्यग्रहणान्मुख्यनयः स्वस्वार्थग्रहणे नयानां सप्तम ङ्गी तुवेन व व्यापारात् ॥ १४ ॥
व्याख्यार्थः-उत्पत्ति तथा नाशके सापेक्ष अर्थात् उत्पत्ति और नाशको अपेक्षा रखनेवाला अशुद्धद्रव्यार्थिक पांचवां भेद जानना चाहिये क्योंकि-उत्पत्ति और व्ययके सापेक्ष तथा सत्ताका ग्राहक जो है; उसको अशुद्धद्रव्यार्थिक पांचवाँ भेद मानागया है । ५ । जैसे एक कालमें द्रव्य उत्पाद ( उत्पत्ति ) व्यय (नाश ) तथा ध्रौव्य (नित्य ) स्वरूप कहा जाता है । यदि यह कहो कि-ये तीनों ( उत्पाद, व्यय तथा ध्रौव्य ) स्वरूप एक ही कालमें तथा एक ही पदार्थमें कैसे होते हैं, तो उसकी व्यवस्था इस प्रकार है; कि-जैसे सुवर्ण द्रव्यमें जो समय कटक (कड़ा )आदिरूप पर्यायकी उत्पत्तिका है; वही समय केयूर (बाजू) आदि पूर्व पर्यायके विनाशका भी है; परन्तु कटक और केयूर दोनों में जो सुवर्णकी सत्ता है वह परिणामिनी नहीं है; किन्तु सुवर्णरूपता पूर्व पर पर्यायोंमें एक ध्रुव (नित्य )स्वरूपसे विद्यमान है; अब कदाचित् ऐसी शंका करो कि-उत्पाद, व्यय और ध्रौव्यरूपका ग्राहक होनेसे यह 'प्रमाणवचन ही हुआ न कि-नयवचन' ? सो नहीं कह सकते; क्योंकि-मुख्य तथा गौण भावसे ही इस पंचम नयकेद्वारा उत्पाद व्यय ध्रौव्यरूप तीन लमगों का ग्रहण होनेसे अपने अर्थके ग्रहणमें मुख्य नय है; और पर अर्थके में नहीं क्योंकि--सब नयोंका सप्तभंगीनयके द्वारा ही व्यापार होता है ।। १४ ।
१ संपूर्णरूपसे वस्तुको सिद्ध करनेवाला प्रमाण कहलाता है। अतः यहां जब द्रव्यके तीनों स्वरूपोंका कथन करदिया तो यह प्रमाण है ।
२ नय वस्तुके एक ही अंशको मुख्यतासे कहता है । ३ प्रवृत्त नय भी वस्तुको अनेकान्तस्वरूपता दर्शानेकेलिये सप्तमंगीको लेकर ही प्रवृत्त होता है।
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