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श्रीमद्राजचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् व्यभिचारिणी है अर्थात् नित्यभावका आश्रय करके तीन कालमें अविचलितस्वरूप (अटलरूप) रहती है । इसलिये द्रव्य के नित्यपनेसे यह सत्ताग्राहक शुद्धदव्यार्थिक नामक द्रव्यार्थिकनयका द्वितीय भेद सिद्ध होगया ॥११॥
अथ तृतीयभेदमुपदिशन्नाह । अब तृतीय भेदको दर्शाते हुए कहते हैं ।
कल्पनारहितो भेदः शुद्धद्रव्याथिकाभिधः ।
तृतीयो गुणपर्यायादभिन्नः कथ्यते ध्रुवम् ॥१२॥ भावार्थः-जो गुण तथा पर्यायसे अभिन्न है वह भेदकी कल्पनासे रहित शुद्ध द्रव्यार्थिक नामवाला द्रव्यार्थिकनयका तीसरा भेद कहा जाता है ।। १२ ॥
व्याख्या । भेदकल्पनया रहितः कल्पनारहितस्तृतीयो भेद: शुद्धद्रव्याथिकनामास्ति ।३। यथा जीवद्रव्यं पुद्गलादिद्रव्यं च निजनिजगुणपर्यायेभ्यश्चामिन्नमस्ति । यद्यपि भेदो वर्तते द्रव्यादीनां गुणपर्यायेभ्यस्तथापि भिन्नविषयिण्यर्पणा न कृता । अभेदाख्यवार्पणा कृता अत:कारणाद्यद्रव्यं तत्तद्रव्यजन्य गुणपर्यायाभिन्नं तिष्ठति यदेव द्रव्यं तदेव कृणो यदेव द्रव्यं तदेव पर्यायो महापटजन्यखण्डपटवत्तदात्मकत्वात् । अत्र हि विवक्षावशाद्भिन्नाभिन्नत्वं ज्ञेयमिति ॥१२॥
___ व्याख्यार्थः-भेदकी कल्पनासे रहित होनेसे कल्पनारहित तृतीय भेद शुद्धद्रव्यार्थिक नामक है; अर्थात् द्रव्यार्थिकनयके तीसरे भेदका नाम “कल्पनारहित शुद्धद्रव्यार्थिक है । जैसे जीव द्रव्य तथा पुद्गलआदि द्रव्य अपने अपने गुण तथा पर्यायोंसे अभिन्न है, यद्यपि द्रव्यआदिके गुण तथा पर्यायोंसे भेद भासता है; तथापि भेदके विषयवाली अपणा नहीं की, अभेदनामक ही अर्पणा की । इस हेतुसे जो द्रव्य है; वह उस द्रव्यसे उत्पन्न होने योग्य गुण और पर्यायोंसे अभिन्नरूप स्थित है; क्योंकि-जो द्रव्य है; वही गुण है; जो द्रव्य है; वही पर्याय है; तदात्मकपनेसे, जैसे कि-महापट ( बड़े वस्त्र ) से उत्पन्न खण्ड पट (छोटा वस्त्र) भावार्थ-एक बड़े वस्त्रको फाड़कर उसमेंसे छोटा वस्त्र निकालें तो वास्तवमें वह छोटे वखरूप पर्याय बडे वस्त्ररूप द्रव्यसे अभिन्न ही है; क्योंकि-वह छोटा वस्त्र बडे वस्त्रस्वरूप ही है। ऐसे ही जितने गुण और पर्याय हैं। वे तदात्मकतासे द्रव्यरूप ही है। यहां द्रव्य और पर्यायका भेद तथा अभेद विवक्षाके वशसे जानना चाहिये अर्थात् जब द्रव्यस्वरूपसे विवक्षा करेंगे तब तो द्रव्यपनेसे सब गुण, पर्याय अभिन्न हैं; और जब पर्यायरूपसे विवक्षा करेंगे तब सब गुण पर्याय द्रव्यसे भिन्न हैं ।। १२ ।।
अथ चतुर्थभेदमाह । अब चतुर्थभेदका कथन करते हैं ।
कर्मोपाधेरशुद्धाख्यश्चतुर्थो भेद ईरितः। कर्मभावमयस्त्वात्मा क्रोधो मानी तदुद्भवात् ॥१३॥
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