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श्रीमद्राजचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम्
जहां अन्य अर्थ लक्षित हो उस आरोपित क्रियाको लेके प्रवृत्त होनेवाली शक्तिको लक्षणाशक्ति कहते हैं जैसे कहा भी है कि -- "मुख्यार्थबाधे तद्योगे रुढितोऽर्थप्रयोजनात् ॥ अन्योर्थो लक्ष्यते यत्सा लक्षणारोपितक्रिया ॥१॥ भावार्थ:-- मुख्य अर्थका बाध होनेपर तथा उसका योग होनेपर अर्थ प्रयोजनसे जिससे रूढ़ीसे भिन्न अर्थ लक्षित हो वह लक्षणा होती है ॥ १ ॥ जैसे “गङ्गायां घोषः" यहाँ गंगाका मुख्य अर्थ प्रवाह परन्तु उस मुख्य अर्थ में घोष ( अहीरोंके ग्राम ) की अधिकरणता ( आधारता ) का बाध है इसलिये गंगासे संबन्ध रखनेवाले अन्य अर्थ गंगातट में गंगाशब्दको लक्षणा हुई तब " गंङ्गायाम् ” इस पदका अर्थ “गंगातटे" ( गंगाजीके तटपर ) "घोषः " ग्राम है यह अन्वय बनगया ऐसे ही यहां भी समझलेना ॥ २॥
अथोक्तमेव दृढयन्नाह
अब पूर्वोक्त अर्थको ही दृढ करते हुए कहते हैं ।
पर्यायार्थिक एवापि मुख्यवृत्त्यात्र भेदताम् । उपचारानुभूतिभ्यां मनुतेऽभेदतां त्रिषु ॥ ३ ॥
भावार्थ:-- और पर्यायार्थिक नय भी यहां मुख्यवृत्तिसे तो भेद भाव ही मानता है, परन्तु उपचार तथा अनुभवसे तीनोंमें अभेद मानता है || ३ ||
व्याख्या । पर्यायार्थिकनय एवापि एवमेव प्रकारेणोक्तलक्षणेन मुख्यवृत्त्या प्रधानव्यापारेणात्र द्रव्यगुणपर्यायेषु भेदतां भेदभावं ज्ञापयति । यत एतस्य नयस्य मते मृदादिपदस्य द्रव्यमित्यर्थः । १ । रूपादिपदस्य गुण इत्यर्थः । २ । घटादिपदस्य कम्बुग्रीवपृथुवुघ्नादिपर्याय इत्यर्थः । ३ । इत्थं त्रयाणामपि मिथो नामान्तरकल्पना भिन्ना भिन्ना प्रदर्शिता । अतो द्रव्यगुणपर्यायाणां प्राधान्येन भेदोऽस्तीति ध्येयम् । तथा पुनरुपचारानुभूतिभ्यामुपचारो लक्षणा, अनुभूतिरनुभवः, उपचारश्वानुभूतिश्च ताभ्यां पर्यायार्थिकनयोऽप्यभेदतामभेदभावं द्रव्यादिषु त्रिषु मनुते । यतो घटादि मृद्द्रव्याद्यभिन्नमेवास्ति लक्षणया ज्ञानेन चेति । इमां प्रतीति घटादिपदानां मृदादिद्रव्येषु लक्षणाप्रवृत्त्याङ्गीकुर्वतां न कदापि क्षतिरिति भावार्थः ।। ३ ।।
व्याख्यार्थः - पर्यायार्थिक नय भी इस ही पूर्वोक्त प्रकारसे अर्थात् मुख्यवृत्ति ( प्रधान व्यापार ) से इन द्रव्यादि तीनोंमें अर्थात् द्रव्य गुण पर्यायोंमें भेदभाव ही ज्ञापित करता है । क्योंकि इस नयके मतसे मृत् ( मृत्तिका ) आदि पदका द्रव्य यह अर्थ है । १ । श्याम रक्त तथा पीतादि पदोंका गुण यह अर्थ है । २ । और घटआदि पदका कंबुग्रीव ( शंखके तुल्य गलेसहित ) तथा विशाल उदर सहितआदि पर्याय अर्थ है । ३ । इस प्रकार द्रव्य, गुण और पर्याय तीनोंकी नामान्तरकल्पना परस्पर भिन्न भिन्न प्रदर्शित की गई है, इससे यह सिद्ध हुआ कि --पर्यायार्थिक नयके अनुसार द्रव्य, गुण, पर्याय प्रधानतासे भिन्न भिन्न हैं ऐसा निश्चय करना चाहिये । और पुनः उपचार तथा अनुभव से पर्यायार्थिक
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