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श्रीमद्राजचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम्
घट है ही
किसी अपेक्षासे नहीं हो है । ४ । कथंचित् घट है ही कथंचित् घट अवक्तव्य ही है | ५ | कथंचित् घट नहीं ही है कथंचित् अवक्तव्य ही है । ६ । तथा किसी अपेक्षासे किसी अपेक्षासे हैं ही नहीं और किसी अपेक्षा से अवक्तय ही है । ७ ।॥९॥ अथास्याः सप्तमङ्गया भेदाभेदौ योजयति ।
अब इस 'सप्तभङ्गीके भेद तथा अभेदकी योजना करते हैं ।
पर्यायार्थनयाद्भिन्नं वस्तु द्रव्यार्थतोऽपृथक् ।
क्रमार्पितनयद्वन्द्वादद्भिन्नं चाभिन्नमेव तत् ॥ १० ॥
भावार्थ:- पर्यायार्थिक नयकी अपेक्षा से सम्पूर्ण वस्तु भिन्न भिन्न हैं और द्रव्यार्थिक नयकी अपेक्षा से अभिन्न हैं तथा क्रमसे पर्यायार्थिक और द्रव्यार्थिक इन दोनों नयोंकी योजनासे कथंचित् भिन्न और कथंचित् अभिन्न ही हैं ॥ १० ॥
व्याख्या । पर्यायार्थिकनयात्सर्वं वस्तु द्रव्यगुणपर्यायलक्षणः कथंचि'द्भनमस्ति । १ । द्रव्यार्थिकनया कथंचिदभिन्नमेव | गुणपर्यायौ हि द्रव्यस्यैवाविर्भावनिनावावित्युक्तत्वात् । २ । अनुक्रमेण यदि द्रव्यायिकपर्यायायिकयोरपणं क्रियते तदा कथंचिद्भिन्नं कथंचिदभिन्नं च कथ्यते । ३ ॥ १० ॥
व्याख्यार्थः – पर्यायार्थिक नयकी अपेक्षासे द्रव्य गुण तथा पर्य्यायरूपसे सम्पूर्ण पदार्थ भिन्न हैं । १ । और द्रव्यार्थिक नयकी अपेक्षासे कथंचित् सब पदार्थ अभिन्न ही हैं, क्योंकि गुण और पर्याय तो द्रव्य ही के आविर्भाव तथा तिरोभावरूप हैं ऐसा प्रथम कह चुके हैं । २ । और अनुक्रमसे यदि पर्यायार्थिक तथा दयार्थिक दोनों नयोंकी योजना करते हैं तो कथंचित् भिन्न अर्थात् पर्यायसे भिन्न और द्रव्यार्थिकरूपसे अभिन्न कहे जाते हैं || ३ || १० ॥
दोभयादानं तदावाच्यं भवेच्च तत् । एकदेवैकशब्देन नार्थद्वयप्रकाशनात् ॥ ११॥
भावार्थ:- और यदि एक समयमें ही पर्यायार्थिक तथा द्रव्यार्थिक दोनों नयोंका ग्रहण करें तो अवाच्य होता है, क्योंकि एक शब्दसे एक ही क्षण में दो विरुद्ध अर्थोंका प्रकाश नहीं हो सकता ॥ १ ॥
व्याख्या । यद्य कवेलं नयद्वयार्थविवक्षा जायते, तदा त्ववाच्यमेव लभते । यत एकेन शकस्मिन् क्षणेऽर्थद्वयकथनासंभवात् । सांकेतिक शब्देनैकमेव संकेतरूपं निरूपणीयं स्यात्परन्तु रूपद्वयशब्द कथयितुमशक्य एव । पुष्पदन्तादिशब्दा अध्ये कोक्त्या चन्द्रपूर्य योक्ति वदन्ति परन्तु मिन्नाक्त्या कथयितुमशक्या इह तूभयनयार्थी मुख्यतयंव मिन्नोक्त्या उच्चारयितुं योग्यो तद्योग्यत्वं तु यत्रेनापि न
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१ सप्तानां वाक्यविशेषाणां समाहार इति सप्तमङ्गी । अर्थात् सात प्रकारके मङ्ग अर्थात् वाक्योंका जो एकत्र समावेश है उसका नाम सप्तमङ्गी है ।
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