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द्रव्यानुयोगतकणा
[५१ घटः स्यादस्त्येव । १ । स्यानास्त्येव । २ । स्यादवाच्य एव । ३। स्यादस्त्येव स्यान्नास्त्येव । ४ । स्थादस्त्येव स्यादवाच्य एव । ५ । स्यान्नास्त्येव स्यादवक्तव्य एव ।६। स्यादस्त्येव स्यान्नास्त्येव स्यादवक्तव्य एवेति । ७ । इति प्रयोगः इति ॥९॥
व्याख्यार्थः-जैसे द्रव्य पर्याय आदि विशेषसे भङ्ग होते हैं वैसे ही क्षेत्र काल आदि विशेषसे भी अनेक भङ्गोका संभव है, क्योंकि स्वतः विवक्षित घट द्रव्य है इसी द्रव्य घटकी अपेक्षासे क्षेत्रआदिका घट परद्रव्य है, ऐसे ही प्रत्येक प्रत्येक अर्थात् हर एकके प्रति सप्तभंगिये भी करोड़ों सिद्ध होती हैं तथापि लोककी प्रसिद्धिसे जो कम्बुप्रीवादि पर्यायसहित घटद्रव्य है उसी घटका स्वतस्त्व अर्थात् निजस्वरूप कालादि अङ्गीकार करके 'स्वरूपसे घटका अस्तित्व और पररूपसे घटका नास्तित्व है ऐसा निश्चय करके सप्तभंगोंका व्याख्यान करते हैं। जैसे कि-अपने द्रव्य क्षेत्र काल भावकी अपेक्षासे "घटः अस्त्येव" घट है ही । १ । परके द्रव्य क्षेत्र काल तथा भावकी अपेक्षासे “घटः नास्ति एव" घट है ही नहीं । २ । और एक कालमें ही अस्ति तथा नास्ति की विवक्षासे घट अवाच्य ही है, क्योंकि एक शब्दसे अस्ति नास्ति रूप दोनों पर्याय एक काल में प्रधानतासे नहीं कहे जा सकते । ३ । तथा घटका एक अंश तो उसके निज स्वरूप आदिसे विवक्षित करते हैं और दूसरा अंश पररूपसे विवक्षित करते हैं तब “अस्ति 'नास्ति घटः" अर्थात् घट है भी और नहीं भी है, ऐसा चतुर्थ भंग होता है। ४ । तथा घटका एक अंश तो उसके स्वरूपसे विवक्षित करते हैं और अन्य अंश एक ही कालमें उभयरूपसे विवक्षित करते हैं तो “घटः अस्ति परन्तु अवाच्यः" अर्थात् घट है परन्तु वह 'अवाच्य है । इस पंचम भंगकी प्रवृत्ति होती है । ५ । तथा एक अंश तो पररूपसे और एक अंश उभयरूपसे एक कालमें विवक्षित करते हैं तो "घटो नास्ति अवाच्यः” घट नहीं है और अवाच्य है इस छठे भंगको प्रवृत्ति होती है । ६ । और जब एक अंश तो घटका स्वरूपसे विवक्षित करते हैं और एक अंश पररूपसे विवक्षित करते हैं तथा एक अंश एककालमें अस्ति नास्ति इस उभयरूपसे विवक्षित करते हैं तब “घटः अस्ति नास्ति अवाच्यः” घट है नहीं है अवाच्य है यह सप्तम भंग होता है (७) अब सप्तभंगीका प्रयोग इस प्रकार है कि कथंचित् घट है ही । १ । कथंचित् ( किसी अपेक्षासे ) घट नहीं ही है । २ । किसी अपेक्षासे घट अवाच्य ही है । ३। किसी अपेक्षासे घट है ही .१ अपने द्रव्य क्षेत्र काल मावसे । २ परके द्रव्य क्षेत्र काल मावसे । ३ कथन वा निरूपण करनेके अयोग्य । एक वस्तुकी एक कालही में स्वरूपसे सत्ता और पररूपसे असत्ता प्रधानतासे कहनेको असमर्थ हैं इसलिये वह अवाच्य है ।४ रवरूपसे अस्तित्व अंश और पररूपसे नास्तित्व अंश कहने से यह चौथा भंग होताहै। ५ कहने के हुधा निरूपसे सत्ता मानकर भी अरित नारित इस उमयरूपसे अवाच्य है । ७ अन्य द्रव्य क्षेत्रादिसे घटका असत्त्व और उभररूपसे अवाच्य है इसलिये “स्यानारित अवाच्यः" यह छठा भंग है। ८ निजद्रव्य क्षेत्रादिसे घटका सत्व पर द्रव्य क्षेत्रादिसे असत्व तथा बस्ति नास्ति उभयरूपसे अवाच्य इस अभिप्रायसे यह सातवा भग है।
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