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श्रीमद्रराजचन्द्रजैनशाखमालायाम्
व्याख्यार्थः– जो घट पूर्वकालमें अर्थात् परिपाक दशाकी पूर्व अवस्थामें श्यामभाव है वही घट पश्चात् परिपाक दशामें परिणत होकर स्वयं अपने निज स्वरूपसे रक्त वर्णको प्राप्त होता हुआ और रक्तघट इस भिन्न नामको प्राप्त होता हुआ भी दोनों कालमें ही पूर्वका - लकी श्यामरूप अवस्थासे तथा उत्तरकालकी रक्तरूप अवस्थासे घटत्वके साथ भेद तथा अभेदको नहीं कहता है अर्थात् परिपाक दशाके पूर्व श्याम घट और पाकोत्तर रक्त घट होनेपर भी घटत्वरूप में इस कारण कोई विरोध नहीं है । घटत्वके साथ जो घट पूर्व श्याम था वही घट पीछे रक्त हुआ तब वह घट नहीं है ऐसा विरोध नहीं कहता अर्थात् श्याम भी घट था रक्त भी घट है, यद्यपि रक्तत्वका तथा श्यामत्वका पर्यायरूपसे भेद है परन्तु घटत्व रूपसे दोनों दशा में अभेद है । इस रीति से घटत्व के साथ भेद अभेद में कोई विरोध नहीं है। अर्थात् कभी पूर्व श्याम घट और उत्तरकाल में रक्त घट इस प्रकार पूर्वपर पर्याय गुणके ग्रहणसे यद्यपि विभक्त (कथंचित् गुण पर्याय कृत भेदविशिष्ट) भी है तथापि घट तो वह ही हैं, इस रीति से जब श्यामावस्था में तथा रक्तावस्था में श्याम तथा रक्त अवस्थाकृत भेद होनेपर भी घटका भेद न हुआ तब द्रव्य गुण पर्याय के भी परस्पर एकान्त भेद तथा एकान्त अभेदको मत निश्चय करो अर्थात् घटके दृष्टान्तसे द्रव्यादिककी परस्पर एकता जानो, इनके भी कदापि भिन्न भावका भान मत जानो अर्थात् जैसे घटत्व सब दशामें है ऐसे ही सब गुण पर्याय दशामें वही मृत्तिकारूप क्रय है और द्रव्यरूपता किसी गुण पर्यायसे जैसे भिन्न नहीं ऐसे ही गुण पर्याय भी द्रव्यसे भिन्न नहीं हैं, और द्रव्यदेशमें ही गुण पर्यायकी उपलब्धि होनेसे भी द्रव्यसे गुण पर्याय भिन्न नहीं है ॥ ४ ॥
व्याख्या -- अथात्मद्रव्ये भेदाभेदयोरनुभवं दर्शयन्नाह
अर्थः—अब आत्मद्रव्यमें भेद तथा अभेद दर्शाते हुए आचार्य यह सूत्र कहते हैं । बालत्वे मनुजो योऽभूत्तारुण्ये सोऽन्य इष्यते । देवदत्ततयाप्येको ह्यविरोधेन निश्चयम् ॥५॥
भावार्थ::- बाल्य अवस्थामें जो मनुष्य था वह योवन अवस्थासे अन्य ही होजाता है, परन्तु देवदत्त रूपसे वह वाल्य योवन आदि सब अवस्थाओं नें एक ही है ||५||
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व्याख्या -- बालभावे पुरुषो योऽभूद्वालावस्थामापन इत्युच्यते । तथा म एव पुमान् तरुणभावे यौवने अन्य इष्यत, यौवनावस्थामानां बालाद्भित्रस्तरुण इत्यर्थः । तथा च देवःतनया देवदत्त मावेन मनुष्यत्वपर्यायेण भिन्नत्वं नास्ति । यो हि देवदत्तो बालः म एव देवदत्तस्तरुणी मनुजव्यवहाराद्धिन्नो न । तस्मादत्रं कस्मि देवदतविषये बाल्यतारुण्यभावेन भेदस्तथा देवदत्तभावेनाभेद इन एतदविरोधेन निधार्यताम् । उक्तं च-पुरिसम्मि पुरिससद्द जम्माई मरणकालज्जते तस्सओ बालाईया पज्जवभेदा बहुवि । १ । इति ||५||
व्याख्यार्थः– बालभावमें जो मनुष्य था उस समय वह बाल्य अवस्थाको प्राप्त हुआ
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