________________
द्रव्यानुयोगतकणा
[४५ इति । तेषां रूपादीनामिवैतेषां द्रव्यादीनामपि भेदादि वर्तते । तत्र विरोधः किमर्थं क्रियते ? यथा रूपरसादीनामेकाश्रयवृत्तित्वानुभवाद्विरोधो न कथ्यते, तथैव द्रव्यादीनामपि भेदाभेदयोरपि विरोधो न भवेत् । निश्चयेन ज्ञानं चक्षुषा विशृष्टं सूस्थमेव जायते । उक्त च-न हि प्रत्यक्षदृष्टेऽर्थे विरोधो नाम जायते । तथा प्रत्यक्षदृष्टार्थे दृष्टान्तस्याप्यमावतः । उक्त च-क्वेदमन्यत्र दृष्टत्वमहो निपुणता तव । दृष्टान्तं पठसे यत्त्वं प्रत्यक्षेऽप्यनुमानवत् ॥१॥ इति ॥३॥
व्याख्यार्थः-एक स्थानमें अर्थात् घटादि द्रव्यके विषे जनसमूहकी रूढिसे अर्थात् सब लोकके विदित व्यवहारसे अथवा सब लोकोंकी साक्षीसे प्रत्यक्ष प्रमाण द्वारा जब घटआदि द्रव्यमें रक्तत्वआदि गुण पर्यायोंका भेद और अभेद उपलब्ध होता है, तब उनके विरोधके विषयमें भ्रम कैसे होता है ? जैसे रूपआदिके भेद आदि हैं ऐसे ही इन द्रव्यगुणपर्यायोंके भी भेद अभेद हैं, इसमें विरोध क्यों करते हो ? जैसे एक घट अथवा आम्रके फल आदि अधिकरणमें अनुभवसिद्ध रूप रसआदिका भेद अभेद है, वहांपर तुम विरोध नहीं कहते हो, ऐसे ही द्रव्यपर्याय आदिके भेद अभेदका कोई विरोध नहीं हो सकता, क्योंकि निश्चयसे नेत्रद्वारा विचाराहुआ अर्थात् देखा हुआ ज्ञान सत्य ही होता है ऐसा कहा भी है कि प्रत्यक्षसे देखेहुए पदार्थ विरोध नहीं होता, और प्रत्यक्षसे दृष्टवस्तुमें दृष्टान्तका भी अभाव है तथा यह अन्यत्र कहां देखा है ऐसा पूछते हो सो अहो ! यह तुम्हारी निपुणता है कि प्रत्यक्षमें भी अनुमानकी भांति दृष्टान्तको भी पढते हो अर्थात् प्रत्यक्षरूपसे जो भेदाभेद दृष्ट है उस अनुभवको अनुमानके समान अन्धकार तथा प्रकाशके दृष्टान्तद्वारा छिपाते हो ॥३॥
व्याख्या --- अथ भेदाभेदयोः प्रत्यक्षस्याभिलापं पुद्गलद्रव्येण दर्शयन्नाह । अर्थः-अब भेद अभेदके प्रत्यक्षका अभिलाप पुद्गल द्रव्यसे दर्शाते हुए कहते हैं ।
पूर्व श्यामो घटः पश्चाद्भदाद्रक्तो भवन्स्वयम् ।
घटत्वेन विरोधित्वं नैव वक्ति कदाचन ॥४॥ भावार्थ:-जो घट पूर्व अवस्था में श्याम पर्यायवाला है वही पश्चात् भेदसे स्वय रक्तपर्याययुक्त होता हुआ घटत्वके साथ कभी विरोधपनेको नहीं कहता है ॥४॥
व्याख्या । यो हि घटः पूर्वावस्थायां श्यामभावोऽस्ति स एव घटः पश्चात्पाकादिपरिणतः सन् स्वयमात्मना रक्तो रक्तवर्णों भवन् सन् मिन्नत्वेन व्यपदेशं लभन्नपि घटत्वेन कालद्वयेऽपि पूर्वावस्थाश्यामरूपेण : परावस्थारक्तरूपेण च घट मावेन भेदाभेदी न कथयनीति । अतो घटत्वेन विरोधित्वं पूर्व श्यामोय एव , घटः पश्चाद्रक्तो जातः स घटो न इति विरोधिभावं न वक्ति । अर्थात् श्यामोऽपि घट: रक्तोऽपि घटः,
घटत्वेनाविरोध एव । कदाचन पूर्वपरपर्यायगुणादानविभक्तोऽपि - घटस्तु घट एव । एवं श्यामावस्थायां रक्तावस्थायामवस्थाकृतभेदाद्धटभेदो न जातस्तदात्र द्रव्यादीनां परस्परं भेदाभेदौ मावधारय । घटदृष्टान्तेन . द्रव्यादीनामप्यन्योन्यमैक्यं विद्धि न कदापि मिनभावभानं जानीहि ॥४॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org