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श्रीमद्राजचन्द्र जैनशाखमालायाम्
व्याख्यार्थः - परस्पर विरोधधारक भेद और अभेद ये दोनों धर्म द्रव्यादिकमें किस प्रकारसे मानने योग्य हों, क्योंकि जहाँ भेद हो वहां अभेद नहीं रहता है, ऐसे ही जहां जिस वस्तुका अभेद हो वहां भेद नहीं रहता है, इस प्रकार आपस में विरोध है । इसलिये भेद और अभेद ये दोनों एक ही द्रव्यादिकमें नहीं रहते । अर्थात् जैसे अन्धकार और प्रकाश एक जगह रहनेवाले कभी भी नहीं होते हैं वैसे ही ये भेद अभेद भी एक स्थलमें रहनेवाले नहीं हैं । और वैसे ही आचाराङ्गमें कहा है कि “वितिमित्थ समावन्नणं अप्पाणेणं न लभते समाहिति" इस प्रकार शङ्काको प्राप्त हुए शिष्यको गुरु अर्थात् प्रवचनके ज्ञाता पुरुष श्रीस्याद्वाद के वचनों द्वारा कहते हुये कि अहो शिष्य ! यद्यपि घट और घटाभावका परस्पर विरोध संभावित होता है, परन्तु इन भेद तथा अभेद रूप दोनों धर्मोंका परस्पर विरोध नहीं है । क्योंकि सब स्थानों में तथा वस्तुओं में भेद अभेदरूप दोनों धर्म विरोधरहिततासे तथा आश्रयाश्रयिभावसे देख पड़ते हैं । इस ही कारण मूल सूत्रमें " एकसंश्रयौ ” यह पद दिया है अर्थात् एक द्रव्यमें है संश्रय (आधार) जिनका ऐसे भेद और अभेद सर्वत्र बिना किसी विरोधके रहते हैं ।
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"यह यद्यपि सत्य है कि भेद तथा अभेद ये दोनों तुल्य हैं तथापि अभेद स्वाभाविक ' और सत्य है और भेद औपाधिक तथा असत्य है" इस प्रकार शङ्कित होकर कोई कहेगा तो वह उसका कथन भी असम्भव है और अनुभव के गोचर नहीं है । सो कैसे कि व्यवहारसे दोनोंही परकी अपेक्षा करनेवाले हैं । उससे गुणादिकका भेद तथा गुणादिकका अभेद है, इस वचनसे एक आश्रय में रहनेवाले भेद तथा अभेदका अविरोध ही जानना चाहिये । ऐसा भाव है ।। २ ॥
व्या० - पुनविरोधमपाकुर्वन्नाह !
अर्थः-फिर भेद, अभेदके विरोधको दूर करते हुए कहते हैं ।
एकत्र जनतारूढ्या यत्प्रत्यक्षेण लभ्यते ।
रूपादीनामिवैतेषां भेदादि तत्कथं भ्रमः ॥ ३ ॥
भावार्थ:-- :- जब एक घटादि द्रव्य में लोकविदित व्यवहारसे जो प्रत्यक्ष प्रमाण द्वारा रूपादिका भेद अभेद प्राप्त होता है तब इन द्रव्यआदिका भेद अभेद है, इसके मानने में भ्रम कैसे होता है ? अर्थात् विरोध क्यों करते हो ? ॥ ३ ॥ स्थाने घटादिद्रव्यविषये प्रत्यक्षप्रमाणेन रक्तत्वादिगुण पर्यायाणां
व्याख्या । एकस्मिन् लोकसाक्षित्वेन
वा
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जनता रूढ्या यद्भेदाभेदत्वं
लभ्यते
१ स्वाभाविक अर्थात् स्वयंसिद्ध, तात्पर्य यह है कि मृत्तिका और घट में अभेद तो स्वयंसिद्ध है क्योंकि घट दशामें तथा उसके आगे पीछे भी मृत्तिका ही है इसलिये अभेद स्वाभाविक सत्य है । २ घटरूप उपाविसे उत्पन्न भेद औपाधिक ( बनावटो ) है इसलिये असत्य है ।
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सर्वलोकविदितव्यवहारेण तत्कथं भ्रम
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