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द्रव्यानुयोगतर्कणा न तो सब पदार्थ उत्पन्न होते और न नाशको प्राप्त होते हैं, क्योंकि प्रत्येक पर्यायमें द्रव्यका अन्वय ( संबंध ) स्पष्टरीतिसे देखा जाता है और काटेहुए तथा फिर उत्पन्न हुए नख आदिमें जो असत् पदार्थका अन्वय देखते हैं उससे आपके मतमें व्यभिचार होगा ऐसा कहना चाहिये, क्योंकि जो अन्वय प्रमाणसे बाधित है वह अस्पष्ट है, और वास्तवमें अन्वय प्रमाणके विरुद्ध नहीं है, क्योंकि सत्य प्रत्यभिज्ञानसे सिद्ध है इस कारण द्रव्यरूपसे सब वस्तुकी विद्यमानता ही है, न कि उत्पत्ति अथवा नाश, तथा पर्यायरूपसे तो सब पदार्थ उत्पन्न होता है और नाशको प्राप्त होता है, क्योंकि जो पर्याय जिस द्रव्यमें सत्रूपसे विद्यमान है उस पर्यायका ही अस्खलित (निश्चल) रूपसे अनुभव होता है। और ऐसे शुक्ल शंखमें जो पीत आदि पर्यायोंका कामल आदि नेत्रके रोगोंके वशसे अनुभव हो जाता है उससे व्यभिचार नहीं होता, क्योंकि वह अनुभव स्खलनरूप ( चलायमान ) है। भावार्थ नेत्रके रोगसे शुक्लशंखमें पीत (पीले ) वर्णका जो अनुभव होता है वह नेत्ररोगके दूर होनेपर आप ही चलायमान ( नष्ट ) होजाता है । और शंखमें जो पीतादि पर्यायका अनुभव है वह तो अस्खलन ( अविचल ) रूप नहीं है अर्थात् विचलरूप है, क्योंकि शंखमें निर्दोष दशामें जो शुक्लाकार भासता है उसका विनाश तथा नेत्रके दोष-दशामें जो पीताकार भासता है उसकी उत्पत्ति आदि नहीं कर सकता, किन्तु दोष निवृत्त होनेसे वह स्वयं नष्ट हो जाता है । और उसके नाशमें उसके हेतुओंकी व्यर्थता नहीं है, क्योंकि जो कृत्रिम स्वभाव वस्तुमें प्राप्त है उसमें दूसरे पदार्थका व्यापार फलवान नहीं होता, किन्तु जिस कारण (दोषादि) से वह उत्पन्न हुआ है उसकी निवृत्तिसे वह पर्याय नष्ट होता है अन्यथा अनुपपत्ति है ॥११॥
अथ दृष्टान्तेन दृढयन्नाह । अब दृष्टान्तसे उक्त कथनको दृढ करते हुए कहते हैं।
ज्ञातोऽधुना मया कुम्भ इत्यतीतार्थता हि या।
वर्तमानस्य पर्यायात्सा भवेद्वर्त्तमानता ॥१२॥ भावार्थः-इस समय मैंने भूत घटको जाना, इस प्रकार जो अतोतार्थता हुई है वह वर्तमानकी पर्यायसे वर्तमानता होती है ॥१२॥
व्याख्या । यदि असतो जानं भवेतहि अधुना मया अतीतो घटो ज्ञात इत्याकारिका प्रतीतिः कवं जायते । तत्र हि-अतीतो घटो मयः सांप्रत ज्ञान एवं यो बोषो जायते । तत्र द्रव्यात्सतोऽतीतघटस्थ विषये वर्तमानज्ञेयाकाररूपपर्यायादधुनातीतपटो जात इति जानमानतास्ति । अथवा नंगमनयादती वर्तमानार्थारोपः क्रियते । तस्मात्मबंधासतो वस्तुनो जान न भवति । अधुना मया कुम्मो ज्ञात इत्यतीतार्थता हि यामीत मातीतार्थता व मनस्य पर्याय मानता भवेत ॥१२॥
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