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________________ द्रव्यानुयोगतर्कणा.. [ ३७ चक्षुरादि तत्र गौरव न घटते ॥९॥ नैयायिकोऽसतो द्रव्यात् उत्पत्तिरित्थमाह । तदसत् । किं तर्हि । अतीतविषयो घटादि: सर्वथासन्न विद्यते । तच्च पर्यायार्थतो घटो नास्ति तत्र द्रव्यार्थतो नित्योऽस्ति । नष्टो घटोऽपि मृत्तिकारूपोऽस्ति । यदि सर्वथा न भवेत्तहि शशशृङ्गसाधर्म्यं लभेत् । तथा च-सर्वथासन्नर्थो ज्ञाने भासते यः स कथं सद्र पता यातीति विरोधापत्तेः । तस्माद्यत्किञ्चिद्भूतविषयमस्ति तदसन्नास्ति । किन्तु सन्नेव प्रवक्ते । तत्र यं योजना यद्वस्तु नित्यं द्रव्याथिकेन वर्त्तते तत् पर्यायार्थतया कृत्यभावेनानित्यं भासते । परमार्थतत्तु द्रव्यसमवायि भूतविषयं वस्तु कारणोदयेन कार्यतामापन्नं लक्ष्यं जायते । अत: सत एवोत्पत्तिनमितो मावस्येति नियम इति .१०॥ व्याख्यार्थ:-जैसे असत् अर्थात् अविद्यमान घटआदि पदार्थोंका ज्ञान अतीत विषय अर्थात भूत पदार्थके विषयवाला होता है वैसे ही असत् अर्थात् कारणमें अविद्यमान ही घट आदि कार्य मृत्तिका तथा कुम्भकार आदिक सामग्रीके समूहसे उत्पन्न होता है, क्योंकि जब असत् पदार्थका ज्ञान होता है तो ' अविद्यमान पदार्थकी उत्पत्ति कैसे नहीं होती है अर्थात् होती ही है । और जो हम दण्ड : आदिकको घटका कारण कहते हैं इसमें लाघव है, और आप जैनियोंके मतमें दण्ड आदिक ही घटकी प्रकटताका कारण है उसमें गौरव होता है। और घटको प्रकटताका कारण तो नेत्र आदिक इन्द्रिय है परन्तु दण्ड आदिक नहीं। इसलिये कारणसे कार्यका भेद जो हम मानते हैं सो ही सत्य है । तथा द्रव्यरूप घट की अभिव्यक्तिका कारण दण्डकाः अभाव' है न कि दण्ड, और घटके प्रकट होनेमें नेत्र आदिकको जो कारण माना है सो गौरवको नहीं घटित करता है ।।९।। नैयायिक असत् घट आदि कार्यकी द्रव्यसे उत्पत्ति कहता है वह असत्य है । तो सत्य क्या है, इस जिज्ञासामें कहते हैं कि अतीत विषयवाला. घट आदि सर्वथा असत् नहीं क्योंकि वह अतीत विषयवाला घट पर्यायार्थनयसे नहीं है परन्तु द्रव्यार्थिक नयसे उसमें नित्य है। भावार्थ घट नष्ट होगया है तोभी मृत्तिकारूपसे विद्यमान है। यदि वह घट सर्वथा न होवे तो खरगोशके सींगकी समताको प्राप्त होजाय । औरः जो सर्वथा अविद्यमान पदार्थ ज्ञानमें भासता है वह पदार्थ विद्यमानताको कैसे प्राप्त होता है ? क्योंकि इस प्रकार मानने में विरोध आता है, इसलिये जो कुछ भूत विषय है वह सर्वथा असत् नहीं है किन्तु सद्रप होकर ही प्रवर्तता है। यहां पर यह योजना करनी चाहिये कि जो वस्तु द्रव्यार्थिक नयसे नित्य वर्त्तती है उस वस्तुमें आकारका अभाव होनेसे पर्यायार्थनयसे अनित्यपना भासता है, और परमार्थसे तो द्रव्यमें समवायी भूतविषय पदार्थ है सो कारणके उदय होनेसे कार्यपनेको प्राप्त होकर देखने में आता है, इस कारण सत् पदार्थकी ही उत्पत्ति ५ दंड आदिके न होनेपर मी घट आदि पदार्थों की अभिव्यक्ति होती है, इसलिये दण्डके अभावको अमिव्यक्तिमें कारण कहा है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001655
Book TitleDravyanuyogatarkana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhojkavi
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1977
Total Pages226
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Religion, H000, & H020
File Size19 MB
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