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________________ ३६ : श्रीमद्राजचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम जो कार्यपने करके नहीं देखने में आती हुई द्रव्यरूप शक्ति विद्यमान रहती है वह ही शक्ति जब सम्पूर्ण सामग्रीकी समीपताको प्राप्त होती है तब गुण और पर्यायके प्रकट होनेसे स्वयं भी प्रकाशित होती है उससे यहाँ कार्य देखा जाता है। यहांपर तिरोभाव तथा आविर्भावोंको भी कार्य के पर्यायकी समानतासे नियामक समझने चाहिये, क्योंकि इस प्रकार आविर्भावके सत् तथा असत्पक्षके विकल्पोंसे जो दूषण लगता है वह नहीं लगता, परन्तु आविर्भाव तथा तिरोभावमें अनुभवके अनुसार पर्यायकी कल्पना की गई है । भावार्थघट रूप कार्यके न देख पड़नेसे द्रव्यरूप अर्थात् मृत्तिकाके पिण्डरूप जो शक्ति विद्यमान रहती है वह ही सामान्यशक्ति कुंभकार चाक दण्ड चीवर (चाकपरसे घटके उतारनेका धागा ) आदि कारणोंके समूहसे रक्तत्व आदि गुण और पृथुबुध्नत्व, कम्बुग्रीवत्वादि पर्यायों में प्रकट होती है तब यह घट रक्त ( लाल ) है जो कि मृत्तिकाके पिण्डसे उत्पन्न हुआ है. इस प्रकार कार्यके आदेशसे रक्त घट है ऐसा व्यवहार हुआ, क्योंकि 'कारणमें कार्यका उपचार है ॥८॥ अथ श्लोकद्वयेन नैयायिकमतं प्रकट यित्वा समाधत्ते । अब दो श्लोकोंके द्वारा नैयायिकका मत प्रकट करके उसका समाधान करते हैं। नैयायिकोऽसतो ज्ञानमतीतविषयं भवेत् । यथा तथा सतः कार्यमपि निष्पद्यते ध्रुवम् ॥ ६ ॥ : इत्थमाह मृषा तच्चासद्भूतविषयं न हि । पर्यायार्थतयानित्यं नित्यं द्रव्याथिकेन यत् ॥ १०॥ युग्मम् - भावार्थः-जैसे असत् ( अविद्यमान ) घट आदिका ज्ञान अतीत अर्थात् भूतपदार्थके विषयवाला होता है उस ही प्रकार अविद्यमान घटआदि कार्य भी निश्चय करके उत्पन्न होता है ॥९॥ ऐसा जो नैयायिक कहता है वह मिथ्या है क्योंकि भूतविषय घटादि असत् नहीं है, क्योंकि जो पर्यायाथिक नयसे अनित्य है वह द्रव्यार्थिक नयसे नित्य है ॥ १०॥ युग्मम् । व्याख्या । यथा असतो घटादेनिमतीतविषयं भवेत्तथा रटादिकार्यमसदपि मृत्तिकादिदलसामनपा निष्पद्यते । असतो ज्ञप्तिरस्ति तो सत उत्पत्तिः कथं न भवति । पुन: घटस्य कारणं दण्डादि कथ्यतेऽस्मामिस्तत्र लाघवमस्ति । भवतां मते घटाभिव्यक्तर्दण्डादिकं कारणमस्ति तत्र गौरवं जायते । अन्यच्चामिव्यक्तः कारणं चक्षुरादीन्द्रियमस्ति परन्तु दण्डादिकं नास्ति । ततः कारणाझेदपक्ष एव । द्रव्यघटाभिव्यक्तः कारणं दण्डाभावः । घटामिव्यक्ती कारणं पर्या १ यद्यपि मृत्पिण्ड मी मृत्तिकारूप द्रव्यका कार्य अथवा पर्यायरूप ही है तथापि घटका कारण है इसलिये उसको कारण माना है और यथार्थ में सभी कार्य वा पर्याय कारण हा हो हैं, सामग्रीसमूहले विशेष पर्यायरूप होनेसे कारणमें कार्यका उपचार किया गया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001655
Book TitleDravyanuyogatarkana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhojkavi
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1977
Total Pages226
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Religion, H000, & H020
File Size19 MB
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