SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 56
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ द्रव्यानुयोगतर्कणा [ ३५ निश्चय है । शशशृंगके समान । जैसे शश ( खरगोश ) का सींग यह असत् ( अविद्यमान ) वस्तु है, क्योंकि असत् परिणतिपना है, अर्थात् शशरूप कारणमें सींगरूप कार्यकी शक्ति नहीं है । इससे शश-सींगरूप कार्यकी उत्पत्तिका अभाव ही देखा जाता हैं । यहाँपर आशय यह है कि यदि कारणमें कार्यकी विद्यमानता स्वीकार करते हो तब तो कार्यकारणका अभेद सहजमें ही प्राप्त हुआ अर्थात् कार्य अपने प्रकट होनेके पूर्व कारणरूप ही था और उत्पन्न होनेपर भी केवल उस द्रव्यका पर्यायमात्र होगया, यथार्थ में वह कारणसे अभिन्नरूप ही है । जैसे घट आदि कार्य मृत्तिकासे उत्पन्न होते हैं तो भी मृत्तिकासे भिन्न नहीं हैं ॥ ७ ॥ कारणे कार्योत्पत्तिक्षणात्पूर्वमेव यदि कार्यसत्तास्ति तदा कार्यदर्शनं कथं न जायते । इत्थं शङ्का समुत्पन्ना, तदुपरि कथयति । अब यदि कारणमें कार्यके उत्पत्तिक्षणके पूर्व भी कार्य विद्यमान है, तो मृत्तिका आदि कारणमें घट आदि कार्य क्यों नहीं दीख पड़ते ? ऐसी शंका वादीके उत्पन्न हुई, उसपर यह आगेका सूत्र कहते हैं शङ्कापनोदं करोति । अब अग्रिम श्लोकसे शङ्काको दूर करते हैं । द्रव्यरूपा तिरोभावाच्छक्तिः कार्ययस्य या सती । गुणपर्याययोराविर्भावात्सा व्यक्तितां व्रजेत् ॥ ६ ॥ भावार्थ:- कार्य कारणमें तिरोभावसे जो द्रव्यरूप शक्ति विद्यमान रहती है वह गुण और पर्यायके आविर्भावसे प्रकटताको प्राप्त होती है' ॥ ८ ॥ व्याख्या । कार्यं यावन्नोत्पन्नं तावत्कारणे कार्यस्य द्रव्यरूपा तिरोभावादन्तर्गतत्वाद्या च कार्यत्वेन लक्ष्य शक्ति: सती विद्यमाना तिष्ठति । सा च शक्ति: सकलसामग्रीसान्निध्योपगता गुणपर्याययोराविर्भावात्प्रकटनाद्वयक्तितामाविर्भावतां व्रजेत् । तस्मादत्र कार्यं दृश्यते । तिरोभावाविभावावपि नियामक कार्यपर्यायी विशेषत्वेन ज्ञेयाः । तेनाविर्भावस्य सदसद्विकल्पदूषण न लगति । परन्त्वनुभवानुसारित्वेन पर्यायकल्पना । अथ च कार्यस्य घटस्य तिरोभावाददर्शनाद्रव्यरूपा मृत्पिण्डरूपा या शक्तिः सती विद्यमाना तिष्ठति सा सामान्यशक्तिराविर्भावत्कारणकलापाद्गुणपर्याययोः रक्तत्वपृथुबुध्नत्वकम्बुग्रीवत्वादिकयोः । रक्तोऽयं घटो योऽयं मृत्पिण्डात्समुत्पन्न इति कार्यादेशेन रक्तो घट इति जात: । कारणे कार्योपचारादित्यर्थः ॥ ८ ॥ व्याख्यार्थः—कार्य जबतक उत्पन्न नहीं हुआ तबतक कारणमें कार्यके छिपे रहनेसे १ यद्यपि कारणमें कार्य है तथापि जिन पदार्थों से वह प्रकट होता है उनके बिना उसकी प्रकटता नहीं होती, इस कारण मृत्तिका के पिण्डमें घटकी द्रव्यरूपता की विद्यमानता होनेपर भी कुम्भकार, चाक आदि सामग्री के विना प्रकटता नहीं होती, २ अत्र ' ज्ञेयो" इति पाठ: सम्यगाभाति । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001655
Book TitleDravyanuyogatarkana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhojkavi
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1977
Total Pages226
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Religion, H000, & H020
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy