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________________ श्रीमद्रराजचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् घटादिद्रव्यमाधार-आधेयौ तु गुणादिकौ । एकाक्षलक्ष्या रूपाद्या द्वयक्षगम्यं घटादिकम् ॥१५॥ भावार्थः-घट आदि द्रव्य तो आधार हैं और गुण आदि आधेय हैं। इनमें आधेय रूप आदि तो एक इंद्रियके विषय हैं, और घट आदि द्रव्य दो इन्द्रियोंके विषय हैं ॥१५|| व्याख्या । घटादिद्रव्यमाधारः द्रव्यं घटादिकमाधरो रूपादीनां । तथा हि-घटे रूपाद्या आधृतास्तिष्ठन्तीति । अथ गुणपर्यायरूपरसादयो नीलपीतादयश्चाधेयाः द्रव्ये स्थिताः । एवमाधाराधेयमावेन द्रव्यात् गुणपर्यायो भेदेन स्थिती । तथा रूपादयो गुणपर्याया एकेन्द्रियगोचरा एकेन्द्रियविषया इत्यर्थः । यथा रूपं चक्षुरिन्द्रियगोचरं चक्षुर्मात्र ग्राह्यगुणत्वात् । रसो हि रसनाविषयो रसनामात्रग्राह्यगुणत्वादित्यादि । अथ घटादिद्रव्यं तु द्वीन्द्रियविषयं, चक्षुःस्पर्शाभ्यां घटो गृह्यते द्रव्यत्वात् । एतन्नैयायिकाभिमतं । स्वमते तू गन्धादिपर्यायद्वारा घ्राणेन्द्रियादिकेनापि द्रव्यप्रत्यक्षमस्ति । न हि चेत् कुसुमं ब्रापयामीत्यादिज्ञाने भ्रान्तित्वं जायते । एवमनेकेन्द्रियग्राह्यद्रव्यात् गुणपर्याययो दो ज्ञातव्यः । गुणपर्याययोरन्योन्यं भेदस्तु सहमावी क्रमभावी च कल्पनीयः । सहभावी गुणः, क्रममावी पर्याय इति । अन्यच्च पर्यायो द्विविधः । सहभावी क्रममावी च । सहभावी गुण इत्यभिधीयते । पर्यायशब्देन तु पर्यायसामान्यस्य स्वव्यक्तिव्यापिनोsभिधानान्न दोष इति । तत्र सहमाविनः पर्यायाः गुणाः । यथात्मनो विज्ञानव्यक्तिशक्त्यादयः । क्रमभाविनः पर्यायास्त्वात्मनो यथा सुखदुःखशोकहर्षादयः । इति भेदकल्पनम् ।। १५ ।। व्याख्यार्थः-घट आदि द्रव्यरूप पदार्थ आधार हैं, क्योंकि घट आदिमें रूप आदि रहते हैं। इसलिये रूपादिक रहनेका स्थान घट आदि द्रव्य आधार' अर्थात् रूपादिका धारण करनेवाला है; और रूप, रस आदि गुण तथा नील पीतादि पर्याय ये सब आधेय' हैं, अर्थात् घट आदि द्रव्यमें रूपादि गुण रहते हैं, इसलिये आधेय हैं, अर्थात् द्रव्यमें ये गुणपर्याय स्थित हैं । इसप्रकार आधार आधेयभावसे द्रव्यसे गुण पर्याय भिन्नरूपसे स्थित हैं; और रूपादि गुणपर्याय एक इन्द्रियसे ग्राह्य हैं, अर्थात् ये एक एक इन्द्रियसे जाने जाते हैं। जैसे रूप नेत्र इन्द्रियका विषय है, क्योंकि केवल नेत्र इन्द्रियमात्रसे जो ग्राह्य गुण हो उसको रूप कहते हैं; तथा रस जिह्वा इन्द्रियका विषय है, क्योंकि जिह्वा इन्द्रियमात्रसे ग्रहण करने योग्य गुण है । और घट आदि द्रव्य तो दो इन्द्रियके विषय हैं, क्योंकि घट नेत्र तथा स्पर्शन (त्वक् ) इन दोनों इन्द्रियोंसे जाना जाता है, क्योंकि वह द्रव्य है । यह कथन नैयायिकमतके अनुसार है, और निज अर्थात् जैनमतमें तो १ चटाई पर देवदत्त है, स्थालीमें पकाता है, तिलमें तैल है, घटमें रूप है, यहाँ चटाई, स्थाली, तिल तथा घट आधार हैं । २ जो वस्तु उनमें वा उनपर है वह आधेय है। चटाईरूप आधारका आधेय देवदत्त, स्थालीका चांवल, तिलका तैल और घटका रूप आधेय है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001655
Book TitleDravyanuyogatarkana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhojkavi
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1977
Total Pages226
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Religion, H000, & H020
File Size19 MB
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