________________
५. ]
श्रीमद्राजचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् व्याख्यार्थः-जैसे घृतशक्ति तृणस्वरूपसे अनुमानप्रमाण द्वारा जानी जाती है तो भी मनुष्योंके आगे कही नहीं जा सकती । यदि तृणरूप पुद्गलोंमें घृतशक्ति नहीं होती तो तृणका भोजन करनेसे गौ दुग्ध कैसे देती ? और उस दुग्धके भीतर भी जो घृतशक्ति हैं वह कहांसे आती ? इसप्रकार अनुमान की हुई घृतशक्ति तृणभावसे जान ली गई है तो भी मनुष्योंके आगे वह प्रकट नहीं की जा सकती । इसी हेतु तृणभावसे ज्ञात जो घृतशक्ति है वह पहली ओघशक्ति है । यह एक दृष्टान्त हुआ । किञ्च, अनुमान प्रमाण सिद्ध जो वह आदिम ओघशक्ति है सो फिर व्यवहारके आदेश को प्राप्त होती है । सो ही कहते हैं कि तृणके भोजनसे उत्पन्न हुए दुग्ध आदि भावसे परिणामको प्राप्त हुई घृतशक्ति जो लोकमें प्रकाशित की जाती है वह लोगोंको सुख देनेवाली अर्थात् रमणीय होती है । तात्पर्य यह कि यदि लोकमें कहो कि घृत तृणसे उत्पन्न होता है तो लोगोंको अच्छा नहीं लगेगा और दुग्धसे घृत उत्पन्न होता है ऐसा कहना सबको अच्छा लगेगा, क्योंकि घृत साक्षात् दुग्ध व दधि (दही) से उत्पन्न होता है इसकारण वह दूसरी शक्ति समुचिता शक्ति कहलाती है। यहांपर ऐसा विवेक करना चाहिये कि व्यवधानरहित कारणके मध्यमें जो शक्ति है वह समुचित शक्ति है अर्थात् दुग्ध तथा दधिरूप कारण और घृतकार्यके मध्यमें कोई व्यवधान नहीं है, इसलिये घृतकार्यके अव्यवहित पूर्व दुग्ध वा दधिरूप कारणमें जो शक्ति है वह समुचित शक्ति है । परंपरा कारणके मध्यमें जो शक्ति है वह ओघशक्ति है । इस ओघशक्तिमें परंपरा इसप्रकार है कि गौ पहले तृणोंको खाती है, फिर उससे रस आदिका जो परिणमन होता है उससे जब पुष्ट होती है तब दुग्ध देती है, पुनः दुग्धसे दधि होता है, इसरीतिसे तृणसे दधिपर्यन्त जो कारणोंका समूह है उससे घृत होता है, ऐसे ओघसे घृतशक्ति प्रकट होती है । और अन्यत्र दूध दही आदि घृतरूप हैं यह व्यवहार लोकमें प्रसिद्ध ही है। तथा ओघशक्ति और समुचित शक्तिके अन्य ग्रंथोंमें कहे हुये समुचित कारणता तथा प्रयोजनता ये दो दूसरे नाम भी जानने चाहिये।
अथ आत्मद्रव्यमध्ये एतच्छक्तिद्वयं विवक्ति ।
अजीव द्रव्यमें दोनों शक्तियोंका निरूपण करके अब आत्मद्रव्यमें ओघशक्ति तथा समुचितशक्तिकी विवेचना करते हैं
प्राक् पुद्गलपरावर्ते धर्मशक्तिर्यथौघजा ।।
अन्त्यावर्ते तथा ख्याता शक्तिः समुचिताङ्गिनाम् ॥८॥ भावार्थ:-जैसे भव्य जीवोंके प्रथम पुद्गलोंके परावर्तनोंमें ओघ ( समूह )से उत्पन्न हुई धमशक्ति थी वैसे ही अन्तके पुद्गल परावर्तन में समुचिता नामसे प्रसिद्ध धर्मशक्ति है ॥८॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org