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श्रीमद्रराजचन्द्र जैनशास्त्रमालायाम्
व्याख्या । यत् भिन्नव्यक्तिषु भिन्न प्रदेश विशेषेषु तुल्या समाना एकरूपा । एकाकारा द्रव्यशक्तिस्तत्तिर्यक्सामान्यमुच्यते तु । यथा । घटेषु घटत्वं, गोषु शाबलेयादिषु गोत्वम, अश्वषु अश्वत्वं, तिष्ठति सामान्यभूतम् । तथा । अनेकाकारघटसहस्र ष्वपि घटत्वमेवेति तिर्यक्सामान्यमिति । अत्र कश्चिदाह । यद्घटादिभिन्नव्यक्तिषु यथा घटत्वादिकं सामान्यमेकमेवास्ति तथा पिडकुसूलादिभिन्नव्यक्तिषु मृदादिसामान्यमेकमेवास्ति । तहि तिर्यक्सामान्योर्ध्व तासामान्ययोः को विशेषस्तत्राह । यत्र देशभेदेन या एकाकारा प्रतीतिरुत्पद्यते तत्र तिर्यक्सामान्यमभिधीयते । यत्र पुनः कालभेदेन अनुगताकारप्रतीतिरुत्पद्यते तत्र ऊर्ध्वता सामान्यमभिधीयते इति । एवं सति दिगंबरानुसारी कचिद्वक्ति | षण्णां द्रव्याणां कालपर्यायरूप ऊर्ध्वताप्रचयः । कालं विना पंचद्रव्याणामवयवसंवातरूपतिर्यक्प्रचयश्चास्ति I एवं वदतां तेषां मते तिर्यक्प्रचयस्याधारी घटादिस्तिर्यक्सामान्यं भवति । तथा परमाणुरूप प्रचयपर्यायाणामाधारो भिन्न एव युज्यते । तस्मात् पंचद्रव्याणाम् । स्कंध १ देश २ प्रदेश- मावेन एकानेकव्यवहार उत्पादनीयः । परन्तु तिर्यक्त्रचय इति नामांतरमप्रयोजकं वालुकापेषवत् । इति नियमः १४ । ५ ।
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व्याख्यार्थ — जो भिन्न भिन्न प्रदेशोंवाले विशेषोंमें समान अर्थात् एक आकारवाली द्रव्यशक्ति है उसको तिर्य्यक् सामान्य कहते हैं । जैसे संपूर्ण वट व्यक्तियां में घटत्व, शाबलेय आदि समस्त गो व्यक्तियोंमें गोत्व, एवमेव अश्व (घोड़े ) में अश्वपना सामान्यभूत रहता है वैसेही अनेक आकारवाले हजारों घटोंमें भी घटत्वही रहता है ऐसा तिर्यक् सामान्य है || अब यहाँपर कोई शंका करता है कि जैसे घट आदि भिन्न भिन्न व्यक्तियों में घटत्व आदि सामान्य एक ही है ऐसे ही पिंड, कुसूल आदि भिन्न व्यक्तियोंमें मृत्तिका आदि सामान्य भी एक ही रूप है । तो तिर्य्यक सामान्य तथा ऊर्ध्वता सामान्य इन दोनोंमें क्या विशेष है ? इस शंकाका उत्तर देते हैं- जहाँपर एक जातिके पदार्थों में केवल देशभेदसे जो सब उस प्रकारकी व्यक्तियों में एकाकार प्रतीति होती है वहाँपर उस ( एकाकार प्रतीति वा भान) को निक सामान्य' कहते हैं; और जहाँ पुनः कालभेदसे सब पर्यायोंमें अनुएकाकार प्रतीति होती है उसको ऊर्ध्वता सामान्य कहते हैं; ये ही दोनोंमें भेद है । इस प्रकार मानने पर कोई दिगम्बर जैनमतानुयायी कहते हैं कि 'जीव, पुद्गल, धर्म; "अधर्म, आकाश' तथा 'काल इन छहों द्रव्योंका काल पर्यारूपमें तो ऊर्व्वता प्रचय है; और Croat छोडकर शेष पंच द्रव्योंका अवयव संघातरूप तिर्य्यकू प्रचय है । इस प्रकार कहनेवाले दिगम्बरियोंके मतमें तिय्यक प्रचयका आधार घटआदि तिर्यक सामान्य होता है; और उसी रीति परमाणुरूप प्रचय पर्य्याओंका आधार उनसे कोई भिन्न होना योग्य है !! इस हेतुसे पचद्रव्योंका स्कंध १ देश २ तथा प्रदेश भावसे एक तथा अनेक व्यवहार प्रतिपादन करना चाहिये; परन्तु तिर्य्यक् प्रचय ऐसा अन्य नाम तो व्यर्थही है, जैसे बालू (रेती) का चूर्ण । वस यही नियम है ||५||
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