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श्रीमद्राजचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम्
मुक्ताभ्यः श्वेततादिभ्यो मुक्तादाम यथा पृथक् ।
गुणपर्याययोर्व्यक्त व्यशक्तिस्तथाश्रिता ॥३॥ भावार्थ-जैसे मोतियोंसे तथा श्वेतता आदि गुणोंसे मोतीकी माला भिन्न है, ऐसेही गुणपर्यायकी व्यक्तिसे द्रव्यशक्ति पृथक् होकर भी एक प्रदेशमें आश्रित होनेसे अभिन्नरूप हे ॥३॥
व्याख्या । यया मुक्ताभ्यो, मौक्तिकानां श्वेततादिभ्यश्च मौक्तिकमाला मिना वर्तते, तथैव द्रव्य - शक्तिगुणपर्यायव्यक्तिम्याम । तयात्र समाधिः । गुगपर्याययोक्तः सकाशात् पयगपि द्रमशक्तिरेकप्रदेश. संबंधेनाश्रिता अमिन्ना अपृथगित्यर्थः । श्वेततादयो मौक्तिकानां गुणस्थानिनः, मौक्तिका: पर्यायस्यानिनः । एतद्वयं भिन्नमपि द्रव्यस्थाने मुक्तादाम्नि रंगतमभिन्नं सत् मुक्तादामेति व्यवहारो जायते । इति दृष्टांतयोजना । अथ च घटादिद्रव्यं प्रत्यक्षप्रमाणेन सामान्यविशेषरूपमनुमवत् सामान्योपयोगेन मृत्तिकादिमामात्यं मासते विशेषोपयोगेन घटादिविशेषं च भासते । तत्र यत्सामान्यमानं तद्रव्यरूपम् । यश्च विशेषः स गुणपर्यायरूपो ज्ञेयः । ३।
व्याख्यार्थ-मौक्तिक ( मोतीकी ) माला, मोतीसे तथा मोतीमें रहनेवाले श्वेतता आदि गुणोंसे जैसे भिन्न भासती है, ऐसे ही गुणव्यक्ति तथा पर्यायव्यक्तिसे द्रव्यशक्ति भिन्न भासनेपर भी एकप्रदेशसंबन्धमें आश्रित होनेसे अभिन्न है, यह अभिप्राय सूत्रका है । श्वेत आदि गुण जो हैं वे मोतियोंके गुणस्थानी हैं, और मोती पर्यायस्थानी हैं । ये दोनों (गुणपर्याय) भिन्न होकर भी, मोतीकी मालारूप द्रव्यस्थानमें मिले हुए अभिन्न हैं, इस ही से मोतीकी माला यह व्यवहार होता है, ऐसे सूत्रके दृष्टान्तकी योजना है। और जो घट आदिरूप द्रव्य प्रत्यक्ष प्रमाणसे सामान्य और विशेषरूपको अनुभव करता हुआ सामान्य उपयोगरूपसे मृत्तिका आदि सामान्यरूप भासता है, और विशेष उपयोगसे घट आदि विशेषरूप भासता है; इसमें जो सामान्यका भान है वह तो द्रव्यरूप और जो विशेषका भान है उसको गुणपऱ्यांवरूप जानना चाहिये ॥३॥
अथ सामान्य द्विप्रकार दर्शयन्नाह ।। अब दो प्रकारके सामान्यको दिखाते हुए सूत्र कहते हैं ।।
ऊर्ध्वतादिमसामान्यं पूर्वापरगुणोदयम् ।
पिंडस्थादिकसंस्थानानुगता मृद्यथा स्थिता ॥४॥ भावार्थ-पूर्वोक्त गुणपर्यायोंके उदयका कारण, तथा पूर्वोत्तर पर्यायोंकी त्रिकाल दशामें पिंड कुसूल आदि अनेक आकारों में जो एक अनुगतरूपसे स्थित है उसको प्रथम अवता सामान्य कहते हैं ॥४॥
व्याख्या । पूर्वः प्रथमोऽपरोऽग्रेतनो यो गुणो विशेषस्तयोरुदयं कारणं पूर्वापरगुणोदयं पूर्वापरपर्याययोरनुगतमेक द्रव्यं त्रिकालानुयायी यो वस्त्वंशस्त दूध्वंतासामान्यमित्यभिधीयते । निदर्शनमुत्तानमेव । यथापिंडो मत्पिडः अस्थिः कुसल इत्यादयोऽनेके सस्थाना आकृतयस्तासु अनुगता पूर्वापरसाधारणपरिणामद्रव्यरूपा
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