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द्रव्यानुयोगतर्कणा
[ ११ है उसमें सर्व आदर अर्थात् संपूर्ण प्रयत्नसे आएर करो, परन्तु परमार्थसे गुरुके वाक्यमें स्थित रहना चाहिये, तथा अपनी अल्पबुद्धिको जानकर अहंकार नहीं करना चाहिये ।
और "निर्धन पुरुष धनको पाकर संसारको तृणके समान समझता है" यह जो दृष्टान्त है वह तुमारे ऊपर न घटे ॥ इसीसे ऊपरके चारों नय अति गंभीर अर्थसहित हैं। और जिस किसी साधारण मनुष्य के स्मरण-विषयमें नहीं आते इसी कारणसे सिद्धान्त में वे प्रथम नहीं दिखाये गये, क्योंकि उनका रहस्य परम गुरुभक्त को ही देना उचित है, ऐसा शास्त्रकारोंने कहा है ॥
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इति द्रव्यानुयोगतर्कणायां कृतिमोजविनिर्मितायामाचार्योपाधिधारिद्विवेद्य पनामकपण्डित
ठाकुरप्रसादशास्त्रीप्रणीतभाषाटीकासमलङ्क तायां प्रथमोऽध्यायः ॥२॥
अथ द्रव्यस्वरूपमाह। अब द्रव्यके स्वरूपका निरूपण करते हैं ।
गुणपर्याययोः स्थानमेकरूपं सदापि यत् । स्वजात्या द्रव्यमाख्यातं मध्ये भेदो न तस्य वै ॥१॥
भावार्थ-जो गुण और पर्यायोंका स्थान है; जो निजस्वरूपसे सदा एकरूप रहता है, और जिसके निजस्वरूपका भध्यमें कुछ भेद नहीं है, वह द्रव्य कहा गया है ॥११॥
व्याख्या । गुणपर्याययोर्माजनं कालत्रये एकरूपं द्रव्यम स्वजात्या निजस्वेत एकस्वरूप भवति । परं पर्यायवत् न परावृत्ति लमते तद्रव्यमुच्यते । यथा ज्ञानादिगुणपर्यायभाजनं जीवद्रव्यम् । रूपादिगुणपर्यायमाजनं पुद्गलद्रव्यम । सर्वरक्तवादिघटत्वादिगुणपर्यायमाजनं मृद्रव्यम् । यथा वा तंतवः पटापेक्षया द्रव्यम । पुनस्तंतवोऽवयवापेक्षया पर्यायाः । कथं ? यतः पटविचाले पटावस्थाविचाले च तंतूनां भेदो नास्ति । तन्त्ववयवावस्थायामन्वयत्वरूपो भेदोस्ति । तस्मात् पुद्गलस्कंधमध्ये द्रव्यपर्यायत्वमापेक्षिकं बोध्यम । अथ कश्चिदेवं कथयिष्यति । द्रव्यत्वं तु स्वाभाविकं न जातम् । आपेक्षिकं जातं । तदा तं समाधते । मो तार्किक ! शुण । यत्सकलवस्तूनां व्यवहारोऽपेक्षयैव जायते । न तु स्वमावेन । तस्मादत्र न कश्चिद्दोषः । ये च समवायिकारणप्रमुखैद्रव्यलक्षणं मन्वते तेषामपि अपेक्षामनुमर्तव्यैवेति । गूगपर्यायवद्रव्यमिति तत्त्वार्थे । विस्तरस्तु द्रव्याणामुद्दे शलक्षणपरीक्षाभिस्तत्र वास्ति । अतस्ततोऽवसेयः ॥१॥
व्याख्यार्थ -जो गुण और पर्यायका आश्रय हो, निजस्वरूपसे कालत्रयमें भी एकरूप हो, न कि-पर्सायके सदृश परिवर्तनको प्राप्त हो उसको द्रव्य कहते हैं । जैसे ज्ञान आदि गुणपर्यायका भागी जीवद्रव्य है, और रूप आदि गुणपर्यायका भागी पुद्गल द्रव्य है । इसीप्रकार सर्व रक्तत्व आदि गुण तथा घटत्व आदि पर्यायका भागी मृत्तिकारूप
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