________________ 230] श्रीमद्राजचन्द्रजैनशाखमालायाम् साथ संयोग है; इसीसे उनको उपचरित पर्याय कहते हैं परन्तु अशुद्ध पर्याय नहीं कहते / क्योंकि द्रव्यके अतथाभावके (अन्यपने के) हेतुओंमें ही अशुद्धताका व्यवहार है, इस कारण, मनुष्य आदि पर्याय भी अशुद्ध है; ऐसा न कहो। किन्तु असद्भूत व्यवहार नयसे ग्राह्य होनेसे असद्भूत है, ऐसा कहो। क्योंकि वह तन्तु आदि पर्यायको तरह एकद्रव्यजनक जो अवयवसंघात ( अवयवोंका समूह ) उसोको अशुद्ध द्रव्यव्यंजनपर्यायता कहनेवालोंके चतुरस्र लगेगा / इसलिये अपेक्षासे शुद्ध और अपेक्षारहिततासे अशुद्ध इस प्रकार अनेकान्त व्यापकता ही श्रेष्ठ है / और इसको आगेके श्लोकमें प्रतिपादित करेंगे। अक्षरोंका अर्थ तो यह है कि, यदि उपचारी अशुद्धताको नहीं प्राप्त होता; तो मनुष्य आदि भी अशुद्ध पर्यायके योगी नहीं हैं // 13 // पुनः कथयति। पुनः उसी विषयको कहते हैं। धर्मादेरन्यपर्यायेणात्मपर्यायतोऽन्यथा। अशुद्धताविशेषो न जीवपुद्गलयोर्यथा // 14 // भावार्थ:-धर्मास्तिकाय आदिके परपर्यायसे तथा अपने पर्यायसे विलक्षणता है और जैसे जीव, पुद्गलमें अशुद्धताका विशेष नहीं है। वैसे इनमें भी नहीं है // 14 // व्याख्या / धर्मादधर्मास्तिकायादेरण्यपर्यायेण परपर्यायेणात्मण्यायेणात्मपर्यायत: स्वपर्यायावन्यथा विषमत्वं विलक्षणत्वं ज्ञातव्यम् / यतः कारणादशुद्धताया विशेषो नास्ति यथा जीव पुद्गलयोविषये अशुद्धताविशेषो नास्ति // 14 // व्याख्यार्थः- धर्मास्तिकाय आदिके परपर्याय तथा आत्मपर्यायसे विलक्षणता जाननी चाहिये / क्योंकि, जैसे जीव और पुद्गलके विषयमें अशुद्धता विशेष नहीं है; वैसे यहाँ भी अशुद्धताका विशेष नहीं है। अथ प्रकारान्तरेण चतुर्विधपर्याया नयचके कथितास्तानेव दर्शयन्नाह / अब नयचक्र में अन्य प्रकारसे पर्यायोंके जो चार भेद कहे हैं; उन्हीं भेदोंको दर्शाते हुए आगेका श्लोक कहते हैं। ___ स्वजातेश्च विजातेश्च पर्याया इत्थमर्थके। स्वभावाच्च विभावाच्च गुणे चत्वार एव च // 15 // भावार्थ:-द्रव्यके विषय में इसी प्रकार स्वजातीयसे तथा विजातीयसे पर्याय होते हैं / ऐसेही गुणके विषयमें भी स्वभाव गुणसे तथा विभाव गुणसे पर्याय होते हैं। इस प्रकार पर्यायके चार भेद हुए // 15 // व्याख्या / इत्यममुना प्रकारेण स्वजाते: पर्यायाः सजातीयद्रव्यपर्यायाः, विजाते. पर्याया विजातीयद्रव्यपर्यायाश्चार्थके द्रव्ये द्रव्यविषये भवन्ति / स्वभावाश्च पुनर्विभावादिति स्वभाव Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org