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________________ 224] श्रीमद्राजचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् जैसे-घटादिका मृत्तिका आदि पर्याय व्यञ्जन पर्याय है अर्थात् मृन्मय अथवा सुवर्णादिमय घट तीनों कालोंमें पर्यायत्व अर्थात् मृत्तिका आदि पर्यायको प्रकाश करता है। और द्वितीय भेद अर्थपर्याय है / यह अर्थपर्याय वर्तमान अणुका विषय है . अर्थात् सूक्ष्म वर्तमान कालवर्ती अर्थ पर्याय है। जैसे घट आदिका उस उस क्षणमें रहनेवाला पर्याय जिस कालके क्षणमें वर्तमानतासे स्थित है उस उस कालकी अपेक्षासे उत्पत्तिद्वारा विद्यमान होनेसे वह अर्थपर्याय कहा जाता है / भाव यह है कि जिस क्षणमें घट विद्यमान है उसी क्षणको विद्यमानतासे वह घट अर्थपर्याय है // 2 // अथ तयोः प्रत्येकं द्वं विध्यं दर्शयन्नाह / द्रव्यतो गुणतो द्वधा शुद्धतोऽशुद्धतस्तथा / शुद्धद्रव्यव्यञ्जनाख्यश्चेतनो सिद्धता यथा // 3 // भाभार्थः-उन पर्यायोंके द्रव्यसे तथा गुणसे दो भेद हैं और शुद्ध तथा अशुद्धके द्वारा भी दो भेद हैं। शुद्ध द्रव्यव्यंजननामा शुद्ध द्रव्यव्यंजन पर्याय जैसे चेतनमें सिद्धता पर्याय है // 3 // व्याख्या / द्रव्यतो द्रव्यपर्यायो भवति तथा गुणतो गुणपर्यायोऽपि भवति, एवं द्वधा द्विप्रकार: स्यात् / तथाहि द्रव्यव्यञ्जनपर्यायो गुणव्यञ्जनपर्याय इति / तथा पुनस्तेनैव प्रकारेण शुद्धतः शुद्धद्रव्यव्यञ्जनपर्यायः, अशुद्धतोऽशुद्धद्रव्यव्यञ्जनपर्यायश्च द्विप्रकारः / तत्र तेषु भेदेषु शुद्धद्रव्यव्यञ्जनाख्यः शुद्धद्रव्यव्यञ्जनपर्यायः कस्मिन्मवति चेतने यथा सिद्धता चेतनद्रव्यस्य यथा सिद्धपर्यायः / अयं हि केवल भावाज्ज्ञेयः // 3 // व्याख्यार्थः-द्रव्यसे तो द्रव्यपर्याय होता है और गुणसे गुण पर्याय होता है, इस प्रकार दो भेद होते हैं / जैसे द्रव्यव्यंजन पर्याय तथा गुणव्यंजन पर्याय होता है / और उसी प्रकारसे शुद्धसे शुद्ध द्रव्यव्यंजन पर्याय होता है तथा अशुद्धसे अशुद्ध द्रव्यव्यंजन पर्याय होता है ऐसे दो भेद हैं / अब उन भेदोंमेंसे शुद्ध द्रव्यव्यंजन नामक शुद्ध द्रव्यव्यंजन पर्याय किसमें होता है, जैसे चेतनमें सिद्धता अर्थात् चेतनद्रव्यका सिद्ध पर्याय है। यह शुद्ध द्रव्यव्यंजन पर्याय केवल भावसे जानना चाहिये / / 3 / / पुनर्भेदोपदेशमाह। फिर भेदका उपदेश करते हैं। अशुद्धद्रव्यव्यञ्जनो नरादिर्बहुधामतः।। गुणतोऽपोत्थमेवात्र कैवल्यमतिचिन्मुखः // 4 // भावार्थ:-अशुद्ध द्रव्यव्यंजन पर्याय मनुष्य देव आदि अनेक प्रकारका माना गया है और इसी प्रकार गुणसे भी जानने अर्थात् शुद्ध गुणव्यंजन पर्याय तथा अशुद्ध गुणव्यंजन पर्याय ये दो भेद गुणसे हैं। इनमें प्रथम भेदमें केवलज्ञान आदि और दूसरे भेदमें मतिज्ञानादि पर्याय हैं // 4 // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org ..
SR No.001655
Book TitleDravyanuyogatarkana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhojkavi
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1977
Total Pages226
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Religion, H000, & H020
File Size19 MB
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