________________ द्रव्यानुयोगतर्कणा [223 प्रयोजनके लिये कहे हैं ? कि श्रीजिनेन्द्रके चरणरूपी कमलोंके शरणको प्राप्त जो भव्यजन हैं, उनको ज्ञानगुणकी प्राप्ति हो इसलिये मैंने कहे हैं / यह तात्पर्य है // 18 // इति श्रीपण्डितठाकुरप्रसादशर्मविरचितभाषाटीकासमलङ्कतायां द्रव्यानुयोगत ___ कणायाँ त्रयोदशोऽध्यायः // 13 // अथ पर्यायभेदानाह। अब पर्यायके भेदोंको कहते हैं। नत्वा जिनं प्रवक्ष्यामि पर्यायोत्कीर्तनं मुदा / व्यञ्जनार्थविभेदेन तद्दिभेदं समासतः // 1 // भावार्थ:-श्रीजिनेन्द्रको नमस्कार कर, आनन्दपूर्वक इस अध्यायमें पर्यायोंका वर्णन करूंगा। वह पर्यायोंका वर्णन समास ( संक्षेप) से व्यंजन और अर्थके भेदसे दो प्रकारका है // 1 // व्याख्या / जिनं वीतरागं नत्वा नमस्कृत्य पर्यायोत्कीर्तनं पर्यायाणामुत्कीर्तनं पर्यायोत्कीर्तनं मुदा हर्षेण प्रवक्ष्यामि / यदित्युत्तरापेक्षायां तत्पर्यायोत्कीर्तनं समासतः संक्षेपाद् व्यञ्जनार्थविभेदेन व्यञ्जनं चार्थश्च तयोविभेद: प्रत्येक योजना व्यञ्जनभेदेनार्थभेदेन तत्कीर्तनं पर्यायस्य द्विभेदं द्विप्रकारकमित्यर्थः // 1 // व्याख्यार्थः-श्रीवीतरागको नमस्कार करके, हर्षसे पर्यायों का उत्कीर्तन (निरूपण) इस चतुदेश 14 अध्यायमें कहूँगा / 'यत' यह आगेके कथनकी अपेक्षामें है जो पर्यायका निरूपण संक्षेपसे व्यंजन और अर्थके भेदसे अर्थात् व्यंजनके भेदसे तथा अर्थके भेदसे दो प्रकारका है // 1 // तत्र व्यञ्जनपर्यायस्त्रिकालस्पर्शनो मतः / द्वितीयश्चार्थपर्यायो वर्तमानाणुगोचरः // 2 // भावार्थ:-उन दोनों भेदोंमेंसे प्रथम व्यंजन पर्याय त्रिकालस्पर्शी कहा गया है और दूसरा अर्थ पर्याय वर्तमान सूक्ष्मकालवर्ती माना गया है // 2 // व्याख्या / तत्र तयो योरुत्कीर्तनयोर्मध्य आद्यो व्यञ्जनपर्यायस्त्रिकालस्पर्शनो मतोऽनुगतकालकलितः कथितः / यस्य हि शिकालस्पर्शनः पर्यायः स च व्यञ्जनपर्यायः / यथाहि-घटादीनां मृदादिपर्यायो व्यअनपर्यायो मृण्मयः सुवर्णादिधातुमयो वा घट: कालत्रयेऽपि मृदादिपर्यायत्वं व्यञ्जयति; तथा द्वितीयोभेदोऽर्थपर्यायः वर्तमानाणुगोचरः सूक्ष्मवर्तमानकालवर्ती अर्थपर्यायः यथाहि-घटादेस्तत्तत्क्षणवर्ती पर्याय: यस्मिन्काले वर्तमानतया स्थितस्तत्तत्कालापेक्षाकृतविद्यमानत्वेनार्थपर्याय उच्यत इत्यर्थः // 2 // व्याख्यार्थः-उन दोनो उत्कीतनोंमें प्रथम जो व्यंजन पर्याय है वह त्रिकालस्पर्शी है अर्थात् पूर्वापर अनुगत सब कालके साथ वह पर्याय स्पर्श करता है / तात्पर्य यह कि जिसका स्पर्श भूत, भविष्य तथा वत्तेमान इन तीनों कालोंमें होता है वह व्यञ्जन पर्याय है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org